श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश एवं प्रमुख श्लोक के अर्थ.....
श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश
भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, धर्म, ज्ञान और भक्ति का उपदेश दिया। यह 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में समाया हुआ है।
✧ भगवद्गीता के मुख्य उपदेश
1. कर्म योग (निष्काम कर्म का सिद्धांत)
- "कर्म करो, फल की इच्छा मत करो।" (2.47)
- भगवान कृष्ण कहते हैं कि हमें अपना कर्तव्य (धर्म) निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
2. आत्मा अमर है (अजर-अमर आत्मा का ज्ञान)
- "आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।" (2.20)
- शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अनश्वर है। मृत्यु से डरना व्यर्थ है।
3. मन की शक्ति (मन पर विजय)
- "मन ही मनुष्य का मित्र है और मन ही शत्रु भी।" (6.5)
- अगर मन को वश में कर लिया जाए, तो यह सबसे बड़ा सहायक बन जाता है।
4. समदर्शी भाव (सुख-दुःख में समान भाव)
- "सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समान भाव रखो।" (2.38)
- जो व्यक्ति हर स्थिति में शांत रहता है, वही योगी है।
5. भक्ति योग (ईश्वर की शरणागति)
- "सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा।" (18.66)
- भगवान की भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है।
6. त्याग और संन्यास का सही अर्थ
- "कर्म करो, लेकिन फल का मोह छोड़ दो।" (5.10)
- संन्यास का मतलब कर्म छोड़ना नहीं, बल्कि फल की इच्छा छोड़ना है।
7. ज्ञान योग (सच्चा ज्ञान क्या है?)
- "जो मुझे सबमें और सबको मुझमें देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।" (6.30)
- ईश्वर सर्वव्यापी है, इस ज्ञान से अहंकार नष्ट होता है।
8. ध्यान योग (मन की एकाग्रता)
- "जैसे दीपक हवा रहित स्थान पर स्थिर रहता है, वैसे ही योगी का मन भगवान में स्थिर होता है।"(6.19)
- ध्यान से मन शांत होता है और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
9. प्रकृति के तीन गुण (सत्त्व, रजस, तमस)
- "सत्त्वगुण शांति देता है, रजोगुण कर्मप्रेरित करता है, तमोगुण अज्ञान में डालता है।" (14.5-9)
- इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर ही मुक्ति संभव है।
10. निष्ठा और समर्पण
- "जो भक्त जिस भाव से मुझे याद करता है, मैं उसे उसी रूप में प्राप्त होता हूँ।" (4.11)
- ईश्वर भक्त के प्रेम के अनुसार स्वयं को प्रकट करते हैं।
श्री मद भगवत गीता के 10 प्रमुख श्लोक हिंदी अर्थ के साथ जो कि जीवन को बदलने की शक्ति रखते हैं....
1. कर्मण्येवाधिकारस्ते... (2.47)
श्लोक:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
अर्थ:
"तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, फल में कभी नहीं।
इसलिए कर्म के फल का मोह मत करो और न ही कर्म न करने में लगो।"
2. आत्मा अजर-अमर है (2.20)
श्लोक:
"न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥"
अर्थ:
"आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।
यह न तो कभी अस्तित्व में आई है, न आएगी।
यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है,
शरीर के मरने पर भी यह नहीं मरती।"
3. मन को नियंत्रित करो (6.5)
श्लोक:
"उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"
अर्थ:
"मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मन को अपने ही द्वारा ऊपर उठाए
और स्वयं को नीचे न गिरने दे।
क्योंकि मन ही मनुष्य का मित्र है और मन ही शत्रु भी।"
4. योगस्थ होकर कर्म करो (2.50)
श्लोक:
"बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥"
अर्थ:
"जो बुद्धिमान है, वह पुण्य-पाप दोनों से मुक्त हो जाता है।
इसलिए योग में लगो, क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है।"
5. परिवर्तन प्रकृति का नियम है (2.14)
श्लोक:
"मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥"
अर्थ:
"हे अर्जुन! सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख सब अनित्य हैं,
आते-जाते रहते हैं। इसलिए इन्हें सहन करना सीखो।"
6. भक्ति से मिलता है मोक्ष (18.66)
श्लोक:
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
अर्थ:
"सभी धर्मों को छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आ जा।
मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, डर मत।"
7. जो जैसा चाहे, वैसा पाता है (4.11)
श्लोक:
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥"
अर्थ:
"जो भक्त जिस भाव से मुझे भजता है,
मैं उसे उसी प्रकार से प्राप्त होता हूँ।
सभी लोग मेरे मार्ग पर चलते हैं।"
8. सच्चा त्यागी कौन? (18.9)
श्लोक:
"कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।
>सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः॥"
अर्थ:
"हे अर्जुन! जो कर्म कर्तव्य समझकर,
आसक्ति और फल की इच्छा छोड़कर किया जाता है,
वही सात्त्विक त्याग है।"
9. ईश्वर सबमें व्याप्त है (6.30)
श्लोक:
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥"
अर्थ:
"जो मुझे सबमें और सबको मुझमें देखता है,
मैं उसके लिए कभी अदृश्य नहीं होता,
और वह मेरे लिए कभी खोता नहीं।"
10. ध्यान योग की महिमा (6.19)
श्लोक:
"यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥"
अर्थ:
"जैसे बिना हवा वाले स्थान पर दीपक नहीं डोलता,
वैसे ही योग में स्थिर चित्त वाला योगी भगवान् में स्थिर हो जाता है।"
निष्कर्ष:
ये श्लोक जीवन, कर्म, ध्यान, भक्ति और मोक्ष
का सार समेटे हुए हैं। इन्हें समझकर जीवन में उतारने से शांति, सफलता और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
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