हरतालिका तीज व्रत का वैज्ञानिक एवं विभिन्न दृष्टिकोण से महत्व... जानिये।

हरतालिका तीज व्रत का महत्व 

हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा भी कहा जाता है । यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन व्रत है क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र देखने के उपरांत व्रत समापन हो जाता है, वही इस व्रत में दिन के 24 घंटे निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत संपूर्ण होता है।



हरतालिका तीज व्रत का वैज्ञानिक महत्व मुख्य रूप से स्वास्थ्य और प्राकृतिक चक्रों से जुड़ा हुआ है। यह व्रत महिलाओं के स्वास्थ्य मुख्यत: प्रजनन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है साथ ही यह व्रत सूर्य और चंद्रमा के चक्रों के साथ जुड़ा हुआ है जो शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। 



स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से पाचन क्रिया में सुधार के अंतर्गत हरतालिका तीज का व्रत निराहार अर्थात् बिना कुछ खाए-पिए रहना होता है, जिससे कि पाचन क्रिया को आराम मिलता है ।उपवास के दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है, जिससे शरीर डिटॉक्सिफाई होता है।

महिलाओं के हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में भी यह व्रत लाभदायक है जो कि उनके समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।उपवास और पूजा-पाठ से मानसिक शांति और एकाग्रता में भी सुधार होता है।हरतालिका तीज का व्रत शरीर की अतिरिक्त वसा को कम करने में मदद करता है। 


सूर्य और चंद्रमा के चक्रों के साथ जुड़ा हुआ यह हर तालिका व्रत प्रकृति के चक्रों से भी संबंधित है क्योंकि सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है और चंद्रमा शीतलता का। तीज के दिन सूर्य और चंद्रमा की स्थिति शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।


सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के अंतर्गत हरतालिका तीज महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसमें एक साथ अनेक महिलाओं को प्रार्थना करने और सामाजिक सौहार्द को बढ़ाने का अवसर मिलता है इसके अतिरिक्त यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ाता है।

 हरतालिका तीज व्रत न केवल धार्मिक,सांस्कृतिक, सामाजिक और पारिवारिक महत्व रखता है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है जो कि महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति भी नि:संदेह शुभ एवं लाभप्रद है।


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