याद आते हैं बगीचे और वो अमराइयां ।
खो गये हैं मायने होने के अपने आप के,
अब नही मिलती वफायें अब कहाँ सच्चाइयां ।
मुद्दतों से आस में तड़पा किया है ये चमन,
फूल बगिया में खिलेंगे और होंगी तितलियां ।
एकतरफा फैसला होता नही है कारगर,
मामला दोनों तरफ का देख लेते अर्जियां ।
दोष सारे दूसरों के और हम निर्दोष हैं,
इस तरह की सोच ने रिश्तों में दी हैं दूरियां ।
दूर होकर भी हमारी. रूह से पैवस्त है,
दे रही मन को सुकूं अपनी यही नजदीकियां ।
देख मौसम का बदलना तिलमिलाये लोग हैं,
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