Tuesday, 18 June 2024

बाग के झूले कहाँ है खो गई पुरवाइयां

बाग के झूले कहाँ हैं खो गई पुरवाइयां।
याद आते हैं बगीचे और वो अमराइयां ।

खो गये हैं मायने होने के अपने आप के,
अब नही मिलती वफायें अब कहाँ सच्चाइयां ।

मुद्दतों से आस में तड़पा किया है ये चमन,
फूल बगिया में खिलेंगे और होंगी तितलियां ।

एकतरफा फैसला होता नही है कारगर,
मामला दोनों तरफ का देख लेते अर्जियां ।

दोष सारे दूसरों के और हम निर्दोष हैं, 
इस तरह की सोच ने रिश्तों में दी हैं दूरियां ।

दूर होकर भी हमारी. रूह से पैवस्त है,
दे रही मन को सुकूं अपनी यही नजदीकियां ।

देख मौसम का बदलना तिलमिलाये लोग हैं, 
हो रहा एहसास अब ये क्या हुई हैं गल्तियां ।

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