कितनी बातें लिख डाली

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 लिखते लिखते कितनी बातें लिख डाली ।
 गुमसुम आंखों में बरसातें लिख डाली ।

कुछ बातें तो लिखना भी आसान नही,
लेकिन जीत की जिद में मातें लिख डाली।

दिन भर सूरज था अपनी परछाई थी,
तन्हा बीती कितनी रातें लिख डाली । 

मुश्किल है मुस्कान सजाना होठों पर, 
सहनी हैं कितनी आघातें लिख डाली ।

गर्दिश में रस्ते खो जायें अफसोस नही,
हमको हासिल जो सौगातें लिख डाली ।

अफसाने लिखने वाले भी क्या जाने, 
इसकी उसकी सबकी बातें लिख डाली ।

बाहर से यूं तो सब अपने लगते हैं, 
मन में लेकिन कितनी घातें लिख डाली ।
निरुपमा मिश्रा 'नीरू' 

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