लिखते लिखते कितनी बातें लिख डाली ।
गुमसुम आंखों में बरसातें लिख डाली ।
कुछ बातें तो लिखना भी आसान नही,
लेकिन जीत की जिद में मातें लिख डाली।
दिन भर सूरज था अपनी परछाई थी,
तन्हा बीती कितनी रातें लिख डाली ।
मुश्किल है मुस्कान सजाना होठों पर,
सहनी हैं कितनी आघातें लिख डाली ।
गर्दिश में रस्ते खो जायें अफसोस नही,
हमको हासिल जो सौगातें लिख डाली ।
अफसाने लिखने वाले भी क्या जाने,
इसकी उसकी सबकी बातें लिख डाली ।
बाहर से यूं तो सब अपने लगते हैं,
मन में लेकिन कितनी घातें लिख डाली ।
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