कभी ठहरता ही नही


कभी ठहरता ही नही, मन में एक विचार।
मन के इस भटकाव से, तन भी है बीमार।।

ताकत दौलत का नशा, अजब लगाये रोग।
इक दूजे की होड़ में , करें दिखावा लोग।।

अपने मतलब की यहाँ, सबको होती चाह।
अपना ही गुणगान है,कब किसकी परवाह।।

सच्ची बातों पर यहां, पल में जाते रूठ।।
सच उन्हें तीखा लगे,जिनको भाये झूठ।।

तपन द्वेष की बढ़ चली,नेह नीर की आस।
तन पर छाया धूप की,मन धरती की प्यास।।
निरुपमा मिश्रा 'नीरू' 

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