TET नीति का संपूर्ण विश्लेषण....।

TET नीति का संपूर्ण विश्लेषण: भारतीय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक शिक्षा संस्थानों में पदीय योग्यता आवश्यकताओं का समसामयिक अध्ययन

सारांश (Abstract)

प्रस्तुत अध्ययन भारतीय शिक्षा प्रणाली में Teacher Eligibility Test (TET) की संरचनात्मक आवश्यकताओं का विश्लेषण करता है। यह शोध पत्र शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निर्मित TET व्यवस्था के स्तरीय वर्गीकरण और पदानुक्रमित आवश्यकताओं की जटिलताओं को प्रस्तुत करता है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य प्राथमिक (PS) एवं उच्च प्राथमिक (UPS) स्तर के शिक्षकों के लिए TET की आवश्यकताओं का तार्किक मैट्रिक्स प्रस्तुत करना है।

मुख्य शब्द (Keywords): TET, शिक्षक पात्रता परीक्षा, प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, पदोन्नति नीति, शैक्षणिक योग्यता

1. प्रस्तावना (Introduction)

भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षक योग्यता का मानकीकरण राष्ट्रीय शिक्षा नीति के केंद्रीय स्तंभों में से एक है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) 2009 के अंतर्गत स्थापित Teacher Eligibility Test (TET) एक महत्वपूर्ण नीतिगत उपकरण के रूप में उभरा है, जो शैक्षणिक संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सुनिश्चित करने हेतु न्यूनतम योग्यता मानदंड निर्धारित करता है।

प्रस्तुत विश्लेषण में हम TET की स्तरीय आवश्यकताओं का एक व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करते हैं, जो वर्तमान में भारतीय शिक्षा प्रणाली के विभिन्न पदानुक्रमित स्तरों पर कार्यरत शिक्षकों के लिए अनिवार्य है।

2. साहित्य समीक्षा (Literature Review)

Teacher Eligibility Test की संकल्पना  राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (National Council for Teacher Education - NCTE) की अनुशंसाओं पर आधारित है। Sharma और Verma (2015) के अनुसार, TET का मूलभूत उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में न्यूनतम शिक्षण मानकों की स्थापना करना है। Kumar et al. (2018) ने अपने अध्ययन में पाया कि TET व्यवस्था ने शिक्षक चयन प्रक्रिया में मानकीकरण लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3. अनुसंधान पद्धति (Research Methodology)

प्रस्तुत अध्ययन में वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक (Descriptive Analytical) पद्धति का प्रयोग किया गया है। द्वितीयक स्रोतों के माध्यम से TET नीति दस्तावेजों, सरकारी अधिसूचनाओं और शैक्षणिक नियमावली का विश्लेषण किया गया है। डेटा संग्रह के लिए राज्य शिक्षा विभागों के नवीनतम परिपत्रों और न्यायिक निर्णयों का अध्ययन किया गया है।

4. TET की स्तरीय आवश्यकताओं का संरचनात्मक विश्लेषण

4.1 प्राथमिक स्तर (Primary Level) की आवश्यकताएं

भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक स्तर (कक्षा I-V) के शैक्षणिक कर्मियों के लिए TET की आवश्यकताओं का विश्लेषण निम्नलिखित श्रेणियों में प्रस्तुत है:

4.1.1 प्राथमिक सहायक अध्यापक (Primary Assistant Teacher)
 *आवश्यक योग्यता: प्राथमिक स्तर का TET (Paper-I)
 तार्किक आधार: पदीय आवश्यकताओं के अनुसार समकक्ष योग्यता
नीतिगत औचित्य: कक्षा I-V के लिए विषयगत दक्षता का प्रमाणीकरण

4.1.2 प्राथमिक प्रधानाध्यापक (Primary Headmaster)
- आवश्यक योग्यता: प्राथमिक स्तर का TET (Paper-I)
- विशेष टिप्पणी: प्रशासनिक पद होने के बावजूद शैक्षणिक योग्यता आवश्यक
- नेतृत्व परिप्रेक्ष्य: संस्थान के शैक्षणिक नेतृत्व हेतु विषयगत समझ अनिवार्य

4.2 उच्च प्राथमिक स्तर (Upper Primary Level) की आवश्यकताएं

कक्षा VI-VIII के लिए TET की आवश्यकताओं का विश्लेषण अधिक जटिल है क्योंकि यह विषयगत विशेषज्ञता की मांग करता है:

4.2.1 उच्च प्राथमिक शिक्षक के लिए योग्यता मैट्रिक्स
- मूलभूत आवश्यकता: UPS स्तर का TET (Paper-II)
- विषयगत दक्षता: गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान में विशेषज्ञता
- शैक्षणिक मनोविज्ञान: किशोर मनोविज्ञान की समझ आवश्यक

5. पदोन्नति और स्थानांतरण की जटिलताएं

5.1 ऊर्ध्वगामी गतिशीलता (Vertical Mobility) का विश्लेषण

भारतीय शिक्षा प्रणाली में कैरियर प्रगति की निम्नलिखित संभावनाओं का विश्लेषण प्रस्तुत है:

5.1.1 प्राथमिक से उच्च प्राथमिक में संक्रमण

केस स्टडी 1: प्राथमिक सहायक शिक्षक → UPS सहायक शिक्षक
- आवश्यक अतिरिक्त योग्यता: UPS स्तर का TET
- नीतिगत तर्क: उच्चतर स्तर की शैक्षणिक चुनौतियों के लिए तैयारी
- व्यावहारिक समस्या: द्विस्तरीय TET की आवश्यकता

केस स्टडी 2: प्राथमिक प्रधानाध्यापक → UPS प्रधानाध्यापक
- चुनौती: प्रशासनिक अनुभव के बावजूद अतिरिक्त TET की मांग
- समाधान: UPS स्तर का TET अनिवार्य
-संगठनात्मक प्रभाव: संस्थागत नेतृत्व में निरंतरता

5.2 क्षैतिजीय गतिशीलता (Horizontal Mobility) के निहितार्थ

5.2.1 स्थानांतरण नीति की जटिलताएं

प्राथमिक प्रधानाध्यापक के UPS में सहायक शिक्षक पद पर स्थानांतरण की स्थिति में:
पदीय चुनौती: उच्च पद से निम्न पद पर स्थानांतरण
योग्यता आवश्यकता: UPS स्तर का TET अनिवार्य
नीतिगत विरोधाभास: प्रशासनिक अनुभव बनाम शैक्षणिक योग्यता

6. UPS शिक्षकों के लिए विशेष प्रावधान

6.1 योग्यता की पारस्परिक मान्यता (Mutual Recognition)

UPS स्तर के TET धारक शिक्षकों के लिए प्राथमिक स्तर की योग्यता की स्वचालित मान्यता एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय है:

- तार्किक आधार: उच्चतर योग्यता में निम्नतर स्तर की दक्षता का अंतर्भाव
- शैक्षणिक सिद्धांत: Bloom's Taxonomy के अनुसार उच्च स्तर की सोच में निम्न स्तर की दक्षताओं का समावेश
-व्यावहारिक लाभ: प्रशासनिक सरलीकरण और लागत प्रभावशीलता

7. अनुशंसाएं (Recommendations)

7.1 द्विस्तरीय TET रणनीति (Dual-Level TET Strategy)


अनुभवजन्य साक्ष्यों के आधार पर निम्नलिखित रणनीति का सुझाव प्रस्तुत है:

1. व्यापक योग्यता सुनिश्चित करना: PS और UPS दोनों स्तरों का TET उत्तीर्ण करना
2. कैरियर लचीलापन: भविष्य की पदोन्नति संभावनाओं के लिए तैयारी
3. व्यावसायिक सुरक्षा: नीतिगत बदलावों से सुरक्षा

7.2 नीतिगत सुधार के सुझाव

1. एकीकृत TET मॉडल: दोनों स्तरों को सम्मिलित करने वाला एकल परीक्षा ढांचा
2. अनुभव-आधारित छूट: वरिष्ठ शिक्षकों के लिए वैकल्पिक मूल्यांकन पद्धति
3. निरंतर व्यावसायिक विकास: TET के स्थान पर Continuous Professional Development (CPD) मॉडल

8. निष्कर्ष (Conclusion)_

TET व्यवस्था की वर्तमान संरचना भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। हालांकि, इसकी स्तरीय आवश्यकताओं की जटिलता शिक्षकों के कैरियर विकास में चुनौतियां प्रस्तुत करती है। द्विस्तरीय TET रणनीति न केवल व्यावसायिक सुरक्षा प्रदान करती है बल्कि शैक्षणिक उत्कृष्टता के मार्ग को भी प्रशस्त करती है।

भविष्य में TET नीति के विकास में शिक्षकों के व्यावहारिक अनुभव और शैक्षणिक योग्यता के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक होगा। यह अध्ययन इस दिशा में एक प्रारंभिक प्रयास है और आगे के अनुसंधान के लिए आधार प्रदान करता है।

संदर्भ ग्रंथ (References)_

1. भारत सरकार. (2009). शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009. नई दिल्ली: सरकारी प्रकाशन।

2. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद. (2010). शिक्षक पात्रता परीक्षा दिशा-निर्देश. नई दिल्ली: NCTE प्रकाशन।

3. Kumar, A., Sharma, P., & Verma, S. (2018). "Teacher Eligibility Test: A Critical Analysis of Implementation Challenges." Journal of Educational Policy and Administration, 15(3), 45-62.

4. शर्मा, आर. के., & वर्मा, ए. (2015). "भारतीय शिक्षा प्रणाली में TET का प्रभाव: एक समीक्षात्मक अध्ययन।" शैक्षिक अनुसंधान पत्रिका, 8(2), 123-140.

5. सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया. (2025). TET आवश्यकता संबंधी निर्णय. केस नंबर: INSC 134/2025.

____________________

लेखक परिचय: यह अध्ययन शैक्षिक नीति अनुसंधान विभाग के पीएच.डी. शोधार्थी द्वारा तैयार किया गया है। लेखक का विशेषज्ञता क्षेत्र शिक्षक शिक्षा नीति और भारतीय शिक्षा प्रणाली का तुलनात्मक अध्ययन है।

घोषणा: यह अध्ययन पूर्णतः शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी मत हैं। साभार Google  (C/P)



शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 दिनांक 26 अगस्त 2009 को प्रकाशित गजट के माध्यम से प्रकाशित हुआ। जिसमें धारा 23 के तहत शिक्षकों की नियुक्ति के लिए योग्यताएं तथा सेवा की शर्तें के अन्तर्गत निम्नवत प्राविधान वर्णित थे:–

"धारा 23. (1) केन्द्रीय सरकार की अधिसूचना द्वारा प्राधिकृत किसी शैक्षणिक प्राधिकारी द्वारा निर्धारित न्यूनतम अर्हताएं रखने वाला कोई भी व्यक्ति शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा।"
"(2) जहां किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा में पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण देने वाली पर्याप्त संस्थाएं नहीं हैं, या उपधारा (7) के अधीन निर्धारित न्यूनतम अर्हताएं रखने वाले अध्यापक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं, वहां केंद्रीय सरकार, यदि वह आवश्यक समझे, अधिसूचना द्वारा, अध्यापक के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित न्यूनतम अर्हताओं को पांच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए शिथिल कर सकेगी, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए।"
"परन्तु यह कि कोई शिक्षक, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ होने पर उपधारा (1) के अधीन निर्धारित न्यूनतम अर्हताएं नहीं रखता है, उसे पांच वर्ष की अवधि के भीतर (अर्थात् 31 मार्च 2015 तक) ऐसी न्यूनतम अर्हताएं अर्जित करनी होंगी।"

इसके उपरांत भारत सरकार की अधिसूचना दिनांकित 31 मार्च 2010 के द्वारा अधिसूचित किया गया कि :–
"निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 23 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केन्द्र सरकार एतद्वारा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् को शिक्षक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र व्यक्ति के लिए न्यूनतम अर्हताओं का निर्धारण करने वाले शैक्षिक प्राधिकरण के रूप में प्राधिकृत करती है।"

"इसके उपरांत भारत सरकार की अधिसूचना दिनांकित 23 अगस्त 2010 के द्वारा कक्षा 1 से 8 में अध्यापक के रूप में नियुक्ति की पात्रता हेतु न्यूनतम योग्यता को निर्धारित किया गया।"
1. न्यूनतम योग्यता
(i) कक्षा I-V
(क) न्यूनतम 50% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र में द्विवर्षीय डिप्लोमा (जिस नाम से भी जाना जाता हो)
या
न्यूनतम 45% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र में द्विवर्षीय डिप्लोमा (जिस नाम से भी जाना जाता हो), जो राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (मान्यता, मानक और क्रियाविधि) विनियम, 2002 के अनुसार प्राप्त किया गया हो।
या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं 4 वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र स्नातक (बी.एल.एड.)
या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं शिक्षा शास्त्र में द्विवर्षीय डिप्लोमा (विशेष शिक्षा)
और
(ख) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् द्वारा निरुपित मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अधीन उपयुक्त सरकारों द्वारा आयोजित [अध्यापक पात्रता परीक्षा (टी.ई.टी) में उत्तीर्ण]।

(ii) कक्षा VI-VIII

(क) बी.ए./बी.एससी और प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र में द्विवर्षीय डिप्लोमा (जिस नाम से भी जाना जाता हो)
  या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ बी.ए. बी.एस.सी. एवं शिक्षा शास्त्र में एकवर्षीय स्नातक (बी.एड.)
या
न्यूनतम 45% अंकों के साथ बी.ए./बी.एससी एवं शिक्षा शास्त्र में एकवर्षीय स्नातक (बी.एड.) जो इस संबंध में समय-समय पर जारी राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (मान्यता, मानक और कियाविधि) विनियम के अनुसार प्राप्त किया गया हो
या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं 4 वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र स्नातक (बी.एल.एड.)
या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ उच्चतर माध्यमिक (या इसके समकक्ष) एवं 4 वर्षीय बी.ए./बी. एससी एड. या बी.ए.एड./बी.एससी.एड.
या
न्यूनतम 50% अंकों के साथ बी.ए./बी.एससी एवं एकवर्षीय बी.एड. (विशेष शिक्षा)
और
(ख) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् द्वारा निरुपित मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अधीन उपयुक्त सरकारों द्वारा आयोजित [अध्यापक पात्रता परीक्षा (टी.ई.टी) में उत्तीर्ण]।

"भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांकित 09 अगस्त 2017 के द्वारा ऐसे शिक्षक, जो दिनांक 26.08.2009 के बाद आरटीई एक्ट की धारा 23 (2) के अधीन राज्यों को प्रदान की गई न्यूनतम योग्यता में शिथिलता के परिणामस्वरूप नियुक्त हुए हो, को न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने हेतु पूर्व में दी गई समय सीमा की तिथि, जो दिनांक 31 मार्च 2015 को समाप्त हो चुकी थी, को दिनांक 31 मार्च 2019 तक के लिए आगे बढ़ाया गया ।"


शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विधिक विश्लेषण: TET अनिवार्यता के संदर्भ में एक समीक्षात्मक अध्ययन

_प्राक्कथन_

भारत में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता सुधार हेतु शिक्षक पात्रता परीक्षा (Teacher Eligibility Test - TET) की अनिवार्यता को लेकर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त निर्णय ने शिक्षा जगत में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य इस न्यायिक निर्णय की समीक्षात्मक विवेचना करते हुए इसके वैधानिक आधारों एवं व्यावहारिक निहितार्थों का विश्लेषण प्रस्तुत करना है।

_अनुसंधान की समस्या एवं परिकल्पना_

मुख्य अनुसंधान प्रश्न
सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 01 सितंबर 2025 के निर्णय में TET अधिसूचना पूर्व नियुक्त शिक्षकों के संदर्भ में क्या वास्तव में कोई व्यापक परिवर्तन अपेक्षित है, अथवा यह केवल विद्यमान नीतिगत स्पष्टीकरण का विषय है?

परिकल्पना
प्रारंभिक अध्ययन के आधार पर यह परिकल्पना प्रस्तुत की जा सकती है कि वर्तमान न्यायिक निर्णय में मूलभूत नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, अपितु केवल दिनांक 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के पैराग्राफ 4 की संपूर्ण व्याख्या की आवश्यकता है।

_साहित्य समीक्षा एवं वैधानिक पृष्ठभूमि_

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: प्रारंभिक उपबंध
दिनांक 26 अगस्त 2009 को लागू शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) की धारा 23(2) में यह महत्वपूर्ण उपबंध था कि राज्य सरकारों को प्रशिक्षण केंद्रों के अभाव की स्थिति में न्यूनतम योग्यता पूर्ति हेतु पांच वर्ष तक की छूट प्रदान की गई थी। यह उपबंध तत्कालीन शैक्षिक अवसंरचना की कमी को दृष्टिगत रखते हुए एक व्यावहारिक समाधान के रूप में स्थापित किया गया था।

अधिनियम में संशोधन: 2017
दिनांक 09 अगस्त 2017 को RTE अधिनियम में पुनः संशोधन के माध्यम से उक्त छूट की अवधि को चार वर्ष तक विस्तारित किया गया। यह संशोधन शिक्षक प्रशिक्षण व्यवस्था के क्रमिक विकास की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया था। इसके अतिरिक्त कोई और महत्वपूर्ण संशोधन नहीं हुआ था।

_केंद्रीय अधिसूचनाओं का विश्लेषण_

23 अगस्त 2010 की अधिसूचना
इस महत्वपूर्ण अधिसूचना में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि उक्त तिथि से पूर्व नियुक्त शिक्षकगण TET परीक्षा से छूट के पात्र होंगे। यह अधिसूचना वर्तमान विवाद के केंद्र में स्थित है तथा इसकी संपूर्ण व्याख्या आवश्यक है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय का पत्राचार (8 नवंबर 2012)
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को प्रेषित पत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि भविष्य में होने वाली नई नियुक्तियों में TET से छूट प्रदान नहीं की जाएगी। साथ ही न्यूनतम योग्यता, विशेषकर प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं को 31 मार्च 2015 तक जारी रखने का निर्देश दिया गया था।

_न्यायिक निर्णय का समालोचनात्मक विश्लेषण_

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (01 सितंबर 2025)
प्रस्तुत निर्णय में मुख्य त्रुटि यह प्रतीत होती है कि 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के पैराग्राफ 4 को संपूर्णता में न लेकर आंशिक रूप से विचारित किया गया है। न्यायालय के निर्णय के पैराग्राफ 168 में इस संदर्भ का उल्लेख मिलता है। यह उल्लेखनीय है कि आज तक कभी भी पैराग्राफ 4 को किसी भी न्यायिक निर्णय में गलत साबित नहीं किया गया है।

पूर्व न्यायिक उदाहरण: शिक्षामित्र मामला
दिनांक 25 जुलाई 2017 के शिक्षामित्र समायोजन संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विश्लेषण इस तथ्य को पुष्ट करता है कि यदि 09 अगस्त 2017 के संशोधन पूर्व न्यूनतम योग्यता में छूट (जिसमें TET भी सम्मिलित था) उपलब्ध थी, तो शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त नहीं होता। यह उदाहरण वर्तमान स्थिति की गलत व्याख्या की संभावना को स्पष्ट करता है।

_प्रस्तावित समाधान एवं सुझाव_

तत्काल उपाय

1. सूचना का अधिकार (RTI) का उपयोग: प्रभावित शिक्षकों को NCTE से स्पष्टीकरण मांगने हेतु RTI आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। इसमें यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि "मेरी नियुक्ति इस विज्ञापन संख्या के अनुसार इस तिथि को हुई है, क्या मुझे अपनी सेवा को सेवानिवृत्ति तिथि तक करने के लिए TET परीक्षा पास करनी होगी अथवा नहीं।"

2. व्यक्तिगत याचिका: TET अधिसूचना पूर्व नियुक्त शिक्षकों को अपनी राज्य सरकार एवं NCTE को पक्षकार बनाते हुए न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए। इसमें अपने-अपने विज्ञापन को आधार बनाकर चुनौती देनी चाहिए।

3. संगठित कार्यवाही की अनावश्यकता: ज्ञापन आधारित आयोजनों की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह समस्या मुख्यतः न्यायिक व्याख्या की है, नीतिगत परिवर्तन की नहीं।

_दीर्घकालिक रणनीति_

वर्तमान न्यायिक निर्णय में संशोधन की आवश्यकता सर्वोच्च न्यायालय से ही संभव है। अतः संगठित प्रयासों के माध्यम से पुनर्विचार याचिका की संभावनाओं पर विचार किया जाना आवश्यक है। इसमें मुख्य फोकस 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के पैराग्राफ 4 की संपूर्ण अवलोकन पर होना चाहिए।

_निष्कर्ष_

प्रस्तुत अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि:

1. वर्तमान न्यायिक निर्णय में मूलभूत नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है

2. 09 अगस्त 2017 के संशोधन को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं है

3. केवल 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के पैराग्राफ 4 की संपूर्ण व्याख्या आवश्यक है

4. प्रभावित शिक्षकों को अनावश्यक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है

5. न्यायालय के निर्णय में केवल आंशिक व्याख्या की त्रुटि प्रतीत होती है, संपूर्ण नीति में परिवर्तन की नहीं

_सुझाव_

शिक्षक संगठनों को ज्ञापन प्रस्तुति के स्थान पर न्यायिक प्रक्रिया का अवलंबन करना चाहिए तथा वैधानिक उपायों के माध्यम से समस्या का समाधान खोजना चाहिए। प्रत्येक प्रभावित शिक्षक को अपनी व्यक्तिगत स्थिति का आकलन करते हुए उचित न्यायिक उपचार की तलाश करनी चाहिए।

_________________

संदर्भ ग्रंथ सूची
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
- केंद्रीय अधिसूचना दिनांक 23 अगस्त 2010  
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय का पत्र दिनांक 8 नवंबर 2012
- सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय
- शिक्षामित्र संबंधी सर्वोच्च न्यायालय निर्णय दिनांक 25 जुलाई 2017

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