शिक्षण कार्य - भयमुक्त वातावरण
भयमुक्त वातावरण का सृजन केवल बच्चों के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि यह शिक्षकों और पूरे शिक्षण समुदाय के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यदि शिक्षक स्वयं भययुक्त वातावरण में कार्य करेंगे तो उनकी कार्यक्षमता, रचनात्मकता और शिक्षण कौशल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
1. भयमुक्त वातावरण का बच्चों पर प्रभाव
बच्चे अधिक स्वतंत्र रूप से सोच सकते हैं और अपनी जिज्ञासा व्यक्त कर सकते हैं।
वे अपनी शंकाओं को खुलकर रख सकते हैं और गलतियाँ करने से नहीं डरते, जिससे उनका सीखने का अनुभव बेहतर होता है।
आत्मविश्वास बढ़ता है और वे शिक्षा को बोझ नहीं बल्कि एक रोचक प्रक्रिया के रूप में देखते हैं।
2. भययुक्त वातावरण का शिक्षकों पर प्रभाव
यदि शिक्षक किसी दबाव, डर या तनाव में कार्य करेंगे, तो उनकी सृजनात्मकता और शिक्षण कौशल प्रभावित होंगे।
डर के कारण वे नए शैक्षिक प्रयोग करने से हिचकिचाएंगे और सिर्फ पारंपरिक तरीकों से पढ़ाने तक सीमित रह सकते हैं।
यदि उन्हें विद्यालय प्रशासन या अन्य उच्चाधिकारियों का भय रहेगा तो वे खुलकर अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाएंगे।
भययुक्त वातावरण शिक्षकों में मानसिक तनाव, कम आत्मविश्वास और कार्य के प्रति असंतोष को जन्म दे सकता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता घट सकती है।
3. भयमुक्त वातावरण शिक्षकों के लिए क्यों आवश्यक है?
शिक्षक स्वतंत्र रूप से अपने विचार साझा कर सकते हैं और नवाचार (Innovation) करने के लिए प्रेरित होते हैं।
वे विद्यार्थियों के साथ अधिक सकारात्मक और प्रभावी रूप से संवाद स्थापित कर पाते हैं।
कार्य के प्रति उनका उत्साह और समर्पण बढ़ता है, जिससे विद्यालय का शैक्षिक वातावरण भी समृद्ध होता है।
जब शिक्षक स्वयं भयमुक्त होंगे तो वे बच्चों के लिए भी एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।
निष्कर्ष:
भयमुक्त वातावरण सिर्फ बच्चों के लिए नहीं बल्कि शिक्षकों और संपूर्ण शिक्षण व्यवस्था के लिए भी अनिवार्य है। जब शिक्षक और विद्यार्थी दोनों स्वतंत्र, सुरक्षित और तनावमुक्त माहौल में कार्य करेंगे तो शिक्षा की गुणवत्ता और प्रभावशीलता में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होगी।
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