वनिता

ममता - प्यार
मन में
पिरोती हूँ,
संवेदनायें
भावनाएं
हृदय में संजोती हूँ,
सृजन -मानवता
संहार - दानवता
के आधार भी
बनती हूँ,
जीवन मुझसे ही
पनपता और
जीवंत रहता ,
कब मेरा होना
व्यर्थ रहता,
मैं हूँ वनिता
संस्कृति - संस्कार
संसार के विस्तार
की धुरी ,
जगत में व्याप्त
निराकार की हूँ
साकार -सजल
माधुरी
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "

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