लोग
कुछ लोग पहले प्रेमपत्र की
तरह होते,
बार - बार पढ़कर भी जी नही भरता
संजोने की जुगत में रहता है मन,
कुछ लोग रोशनी की तरह
होते हैं वो साथ रहें तो
अँधेरों में भी राह मिल जाती,
कुछ लोग घर की तरह होते
कितनी ही दूर क्यों न हों
दिल उनकी पनाह में
जाने को बेचैन रहता,
कुछ लोग जान से भी प्यारे
लगते
वो हँसकर जान भी माँग लें तो
इंकार नही कर सकते ,
मगर
कुछ लोग ऐसे भी होते
कि शब्द बर्बाद ही होंगे
मौन ही काफी
कुछ कहने की जरुरत ही क्या.,,,,,.,,,,,
------ नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
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