मन का उजाला

युग - युग से तुम्हें पाने की प्रतीक्षा
में, मैं अंधेरों में
चल पड़ती हूँ,
स्याह अंधेरों में दिखते
चाँद - सितारे तब महसूस करती 
मैं कि चाँद -सितारों में रोशनी
तुमसे ही,
मेरी साँसों के सितार
पर जीवन - रागिनी
तुमसे ही,
फैल जाता है
मेरे चारों तरफ
मेरे मन का उजाला ,
और मैं तुम्हें आत्मसात
कर लेती ,
तुम्हें पा जाती,
--- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

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