मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Tuesday, 3 March 2015
स्मृति - आँगन
बूँद - बूँद से प्रीति गागर- घन भरे
बेचैन हैं मन - भाव नित नयन झरे
पीड़ा के बादल ये घनेरे सखी
सूखे वो घाव क्यों स्मृति - आँगन हरे
---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "
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