जीवन की बगिया

मैं सुखों की शाम बनूं तू आशाओं की भोर बने मैं रहूँ तेरी प्राणप्रिया तू साँसों की डोर बने जीवन की बगिया मेरी तुम्हीं संवारना सजन प्यासी धरती जैसी मैं हूँ तू घटा घनघोर बने ---- नीरु ( निरुपमा मििश्रा त्रिवेदी )
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे