रात्रि भोजन सही अथवा गलत ❓️आइए विस्तारपूर्वक जानते हैं..।

रात्रि भोजन गलत कैसे ?
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हम सबने देखा होगा कि सूर्य की पहली किरणों से सूर्यमुखी और कमल जैसे पुष्‍प खिलते हैं.. और सूर्यास्त के साथ वापस वो पुष्‍प की पंखुड़ियां अपने आप बन्द हो जाती हैं…।

क्या इस प्रक्रिया का इंसान के साथ कुछ सम्बंध है ?
जी हाँ... 

जैसे सूर्यमुखी की पंखुड़ियां सूर्य की उपस्थिति में खुलती है, वैसे ही हमारा जठर (आमाशय) का छोटा-सा मुँह भी खुल जाता है और सूर्यास्त होने के बाद वो अपने आप सिकुड़ जाता है…। 

वैज्ञानिक और वैद कहते है, भोजन पचाने के लिये जरूरी ऑक्सीजन सूर्य की उपस्थिति से मिलता है।

रात को लोग सोते क्यों हैं ?

रात को सुस्ती क्यों आती हैं?

रात को डर क्यों लगता हैं ?

रात को कौन से जानवर शिकार के लिये बाहर निकलते हैं ?

उल्लू ? बिल्ली ? कुत्ते ? भेड़िये ? जंगली जानवर?

रात को ही काले काम क्यों होते हैं ?जैसे की चोरी, मार-काट....।

रात को ही भूत – प्रेत जैसी बुरी शक्तियाँ क्यों महसूस होती है ?

रात को ही आवारा, मक्कार और गन्दे लोग क्यू दिखाई देते है ??

उपर के कुछ सवालो से महसूस किया जाता है की … रात सोने लिये है.. हर प्राणी और जानवर नई उर्जा पाने के लिये सोते है… दिन भर की भगदड़ से शरीर थकान महसूस करता है.. जो लोग बुरी तरह से ठक गये है उनसे ज्यादा काम हम नही करवा सकते.. वैसे ही..

हमारे शरीर खुद एक यन्त्र है.. जो दिनभर खाई हुई खुराक को चयापचय की प्रक्रिया से पूरी करते हुए शर्करा के रूप मे उत्पादन करता है.. जो हमे पोषण देती है.. रात का खाना मतलब शरीर के यन्त्र से ओवर टाइम करवाना।
सूर्यास्त के 2 घंटे के बाद शरीर मे आई हुई खुराक अन्ननली से आमाशय के मुँह तक आती है। सूर्य प्रकाश की मोजूदगी न होने से पाचन क्रिया  मंद हो जाती है। धीरे धीरे से वो जठर मे उतरती है। बहुत खाने पर पूरा पाचनतंत्र ठप्प हो जाता है मानो कि ट्रेफिक जाम ! कई बार पूरी खुराक सुबह तक पेट मे पड़ी रहती है। ऐसे में इंसान को रात भर नींद नही आती। कब्ज की बीमारी के साथ वॉमिट हो सकती है। उसी से आंखे, पेट, अजीर्ण, दस्त जैसी बीमारी जन्म लेती है।

आयुर्वेद कहता है कि जो लोग अपने पेट को नरम रखते है, दिमाग को ठंडा रखते है और पैर को गरम रखते है उनको कभी भी डॉक्टर या वैद्य के पास जाना नही पड़ता। आज इतनी सारी दवाएं हैं फिर भी करोड़ो लोग अस्पताल मे दिखाई देते है...ऐसा क्यो है ? 

उसका एक बड़ा कारण है की हमारी दिनचर्या व आहारचर्या बदल गई है। जंक फूड, रात का खाना, खाने का कोई समय न होना, पेप्सी और कॉक जैसे पेय है। उसी से सुस्ती आती है… उसी की वजह से गुस्सा आता है।

क्या कहते है अपने शास्त्र :

पद्मपुराण – प्रभासखण्ड

चत्वारो नरकद्वारा: प्रथमं रात्रिभोजनम |

परस्त्रीगमानम् चैव, सन्धानान्तकाइये || 

मतलब, नर्क यानि कि जहन्नुम के चार द्वार है.. पहला रात्रि भोजन, दूसरा परस्त्रीगमन, तीसरा सूर्य के ताप मे रखे बिना बनाया हुआ अचार और चौथा कंदमूल खाने से।

मारकण्डेय ऋषि का कथन है .. मार्कंड पुराण..

'सूर्यास्त के बाद पिया हुआ पानी लहू के बराबर है और खुराक मांस खाने के बराबर है ?

'मांस, मदिरा, रात को खाना और कंदमूल खाने वाले नर्क मे जाने का प्रबंध करते है…'

'हे, युधिस्थिर.. देवताओं ने दिन के प्रथम प्रहर में भोजन किया, दूसरे प्रहर मे संत महात्मा, तीसरे प्रहर मे पूर्वज और चौथे प्रहर मतलब रात को दैत्य व राक्षसो ने किया हुआ है..'

जैन धर्म :

केवल ज्ञानी बताते है की अनेक जीवों को अभयदान देने के लिये और जीव हिंसा से बचाने के लिये रात्रि भोजन का निषेध है.. इसलिये जैन धर्म मे रात्रि भोजन को महापाप माना गया है.. 

योग शास्त्र :

रात को खाने वाले लोग सींग और पूछ के बगैर घूमने फिरने वाले जानवर है..
 
रात को कम रोशनी मे हमें बहुत कम दिखाई देता है… ऐसे में भोजन मे यदि ज़ू यानी सिर में होने वाली लीख से जलोदर की बीमारी आती है..
भोजन मे यदि मक्खी आती है तो वॉमिट हो सकती है। 

भोजन मे यदि स्पाइडर ( मकड़ी) आ जाता है तो सफेद कोढ़ की बीमारी आ सकती है।

भोजन मे यदि कंटक आ जाता है तो गले मे भारी दर्द होता है।

भोजन मे यदि बाल आ जाता है तो स्वरभंग हो सकता है।

रात को भोजन मे बिजली के प्रकाश से आकर्षित होकर कई उड़ते कीड़े मर जाते है..यदि भोजन बिजली के बल्ब के नीचे बन रहा हो तो वो सीधे खुराक मे घुलमिल जाते है.. उसी से फ़ूड पाइज़न होता है.. कभी कभार छिपकली और कॉकरोच भी खुराक मे घुलमिल जाते है।

पहले के जमाने के लोग 100 बरस बहुत ही आराम से जी लेते थे लेकिन आज  तो 40 वर्ष में ही मानसिक और शारीरिक बीमारियां शुरु हो जाती हैं.. उसके पीछे कही न कही हमारे बदले हुए आहार और विचार है.. रात्रि भोजन के मुद्दे पर अरबी रिवाज़ आर्य संस्कृति से पूरी तरह भिन्न है..।

क्या इस भगदड़ की दुनिया में रात्रिभोज को कंट्रोल नही किया जा सकता है ?

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