नज़र वो तो नजारों से चुरायें हैं
लगी कहने कहानी ये हवायें हैं
छुपा कर दिल तराने वो सुनायेगा
जिसे सबने जमाने से भुलायें हैं
रही हलचल यहाँ सच बात पर ही तो
निगाहें भी न कहती ये छुपायें हैं
रहम तो कर कहेगा क्या ज़माना ये
बहुत नादान दिल तोड़े न जायें हैं
रहेंगे हम गुनाहों के मसीहा बस
कई सपनें सुहाने - से सजायें हैं
----- निरुपमा मिश्रा "नीरु "
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