उजले-उजले कागज़
पर जब स्याही
शब्दों के रंग
बिखेरती है
तो वजह होती है,
हर शक्सियत के
होते हैं मायने
कोई बहुत अच्छा
यूँ ही नही होता
तो बुरे होने की
वजह होती है,
आकाश के आँगन में
बादल यूँ ही
नही उमड़ते
बूँदें गुनगुनाती हैं
तो वजह होती है,
सुख आते हैं
दुःख आते हैं
बेमौत मरना ही क्यों
कि जीने की भी तो
कोई वजह होती है,
आँखें मिलकर
शरमायें
खिले चुपचाप
होंठों पर हँसी
तो वजह होती है,
हर वजह में शामिल
है रब की रजा
कि होती है
वजह होने की
भी वजह
--- निरुपमा मिश्रा "नीरू "
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Sunday, 22 February 2015
वजह
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कविता
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