आशा

सुख-शांति की आशा में उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते गये
हर साँस हम नया सबक सीखते पीढ़ियां गढ़ते गये
मन-वचन-कर्म की शुचिता कब मिले दुनिया के चलन में
भेद-छल-दंभ के रिश्तों की बस बेडियाँ जड़ते गये
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू"

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