प्रियतम अनुगामी

प्रियतम अनुगामी
चली मैं
आत्ममुग्धा- सी,
प्रेमिल- स्पर्श-पवन
जैसे हो जीवन -अमृत,
क्षितिज के पार
मिलन तत्पर
अम्बर और वसुंधरा
मिलना भी है अनुपम
शाश्वत युग से निर्धारित ,
विह्वल सुकोमल कामिनी
पुष्प -वर्षा सी जलबिंदुयें
हो विभोर चल पड़ी
प्रेमपथगामिनी
सहज संकोच लज्जानवत
----- निरुपमा मिश्रा "नीरु "

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