दोहे

विपदा के दिन भी भले, रहते हैं दिन चार
हित- अनहित का भेद दें, सिखायें जगत सार

अंखियन की आशायें , लखे सहज मनमीत
हृदय सुनाये क्यों वही, विरह के विगत गीत

मन में रही व्याकुलता , अब अवलोकित भोर
श्याम डगर नित निहारे, राधा भाव विभोर
----- निरुपमा मिश्रा "नीरु "

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