मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Monday, 26 January 2015
भारत ऐसा गणतंत्र रहे
सदा गणना में श्रेष्ठतम भारत ऐसा गणतंत्र रहे
सुरक्षित स्वाभिमान देश का हम रखकर ही स्वतंत्र रहे
भेद,अभाव,विषमताओं के बंध त्याग चलें सब साथ
उन्नति ,सुशासन,अनुशासन प्रतीक ये प्रजातंत्र रहे
----- निरुपमा मिश्रा "नीरु "
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