मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Wednesday, 11 November 2015
रोशनी का त्योहार
रोशनी होती दिलों में हमेशा प्यार से
मिटायें हर ग़म का अंधेरा संसार से
बेबसी के आँसू हों नही किसी आँख में
सीखते हम यही रोशनी के त्योहार से
----- निरुपमा मिश्रा
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