रूठ जायेगा रब
तो भी
वजह होगी
कि बनाई दुनिया
उसी ने
संभालेगा वही
सब,
रूठ जायेगा
ज़माना तो
वजह होगी
कि
चाहिये दुनिया
को
अपने मतलब
के लोग
कभी तो
कहीं तो
जरूरत होगी
ज़माने को भी
मेरी,
मगर
मेरे अपने
तुम
हाँ तुम्ही
रूठ गये तो
जीने की वजह
क्या होगी
मालूम नहीं
क्योंकि
अपनों के संग
होने की कोई
वजह तो नही होती
रिश्तों के बीच
अपनेपन की चाह
ये विश्वास की डोरी
बाँधती हमें
बेवजह भी
लेकिन
जब कभी
तलाशते
साथ होने की
वजह
तो अक्सर
अपने- आप से
रूठ जाते हम
खुद-ब- खुद
बेवजह
-----नीरु ' निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Tuesday, 3 November 2015
रूठ गये तो
Labels:
कविता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment