एक की अपूर्णता पूर्ण हो जाती
दूसरे का सामर्थ्य पाकर
हाथ में हाथ थामें
कदम मिलाते कदमों से,
सुनते हैं एक- दूजे के
सुख-दुःख छिपे उनकी
धड़कनों में,
जीवन की गाड़ी के दो पहिये बराबर
सहयोग करते,
तमाम झंझावात- खुशियां
समेटते,
एक राह के हमसफर
जीवन भर का साथ
जीवनसाथी
अगर
विपरीत रूप लेकर
अलग - अलग
दिशाओं के रुख किये चलते रहें
तो जीवन नरक से बदतर
हो जाता ,फिर
तो साथ - साथ चलना
सम्मान संजोये रखने की
मजबूरी कहलाता
----- नीरु ' निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Tuesday, 7 July 2015
जीवन की गाड़ी
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कविता
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