तुम

बिना तुम्हारे मैं एक दिन की
कल्पना करूं भी तो कैसे,
तुम्हे खोने के ख्याल से
भी डरती ,
दूरियां न आयें कभी
कुछ कहने कुछ सुनने की
आस में हर पल रहती,
वो अनकहे शब्द
जो कहना चाहे थे मैंने
पर कहने- सुनने के बीच
आ जाते हैं कुछ
अधूरे सपने,
बिखर जाती
सपनों की तरह
जब तुम्हे सपनों में खोया
हुआ पाती,
महसूस करो न तुम भी,
भले ही पूरे न हों
ये अधूरे सपनें,
रहें हमेशा
अपने बस अपने,
मेरी खामोशियां
कहतीं,
कि तुम हो मेरे,
मेरे हो सिर्फ  और सिर्फ
तुम
----- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

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