मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Wednesday, 1 July 2015
स्वयं
जिसने जीवन को
जाना
स्वयं को
पहचाना
वो
सागर की तरह
गंभीर
होता है,
उसमें
समायी
होती हैं
प्यार-अपनेपन
की
नदियां,
बेवजह
की हलचल
नही होती,
भावनाओं के तूफान
खामोश
रहते हैं
हृदय में
------ निरुपमा मिश्रा " नीरू"
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