बेमौसम बारिश

सन्नाटों की गुफ्तगू में अजब तूफान हैं खामोश लफ्जों में शोर दर्द का बयान हैं हुई है बेमौसम बारिश में कोई साजिश सूनी आँखों में भीगे हुए कुछ अरमान हैं ---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे