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Showing posts from February, 2015

बेमौसम बारिश

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सन्नाटों की गुफ्तगू में अजब तूफान हैं खामोश लफ्जों में शोर दर्द का बयान हैं हुई है बेमौसम बारिश में कोई साजिश सूनी आँखों में भीगे हुए कुछ अरमान हैं ---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "

वजह

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उजले-उजले कागज़ पर जब स्याही शब्दों के रंग बिखेरती है तो वजह होती है, हर शक्सियत के होते हैं मायने कोई बहुत अच्छा यूँ ही नही होता तो बुरे होने की वजह होती है, आकाश के आँगन में ...

ऐसे क्यों निहारते हो

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ऐसे क्यों निहारते हो तुम मुझे कि जैसे आसमान घिरा हो बादलों से और तुम उनमें झिलमिलाते चाँद जैसे , ये सुरमई धुंधलका क्यों समेटता मुझे तुम्हारे अंकपाश में, छलकती सुधारस प्रीति -गागर, हृदय की अधीरता अनायास होती उजागर , दीपक की रोशनी में नहाई मोम- सी काया, जलती हुई बाती -सा प्रिय -उच्छवास गहराया..... -----   नीरु

आशा

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सुख-शांति की आशा में उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते गये हर साँस हम नया सबक सीखते पीढ़ियां गढ़ते गये मन-वचन-कर्म की शुचिता कब मिले दुनिया के चलन में भेद-छल-दंभ के रिश्तों की बस बेडिया...

अगर इजाजत हो

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फिर नये ख्वाब सजा दूँ अगर इजाजत हो तुम्हीं को तुमसे मिला दूँ अगर इजाजत हो हम ठहर जायें अगर  वक्त ठहरता ही नही कश्मकश  दिल की मिटा दूँ अगर इजाजत हो   बात ऐसी भी क्या कि झिझकती है नज़र हया की चिलमन उठा दूँ अगर इजाजत हो थाम कर दिल अपना कब तलक रहियेगा अब इसे अपना बना लूँ अगर इजाजत हो रुको सितारों जरा रात अभी तो ठहरी है प्यार की रस्म निभा दूँ अगर इजाजत हो ------ निरुपमा मिश्रा "नीरु "

सच-झूठ में पला है

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मोहब्बत भी अजब बला है सपना सच, झूठ में पला है दिल पर काबिज रहा हमेशा लफ्ज़ जो होंठ से फिसला है फूलों सा महफूज़ कहाँ वो मासूम काँटों पर चला है मौसम इरादों का हमेशा धूप कभी छाँव सिलसिला है ऐब नही बातें अपनी हों गुनाह है कि गैर मसला है ----- निरुपमा मिश्रा "नीरु "

जीवन का विश्वास

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धरती ने नित परहित विकसित किये नवांकुर है परहित जीवन जियें सार्थक वरन क्षणभंगुर है मलयज के संग-संग चले अगर जीवन की श्वांस बने, कलकल करती नदियों के संग जीवन का विश्वास बने, सृ...

दूर हमसे घर हमारा हो गया

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ख्वाब में उसका नजारा हो गया डूबते को भी सहारा हो गया कुछ रही होंगी जरूरी ख्वाहिशें वो न था दुश्मन हमारा हो गया राह  में मिलता न जाने कौन ये आम भी तो खास प्यारा हो गया आप भी देख...

गुनाहों के मसीहा

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नज़र वो तो नजारों से चुरायें हैं लगी कहने कहानी ये हवायें हैं  छुपा कर दिल तराने वो सुनायेगा जिसे सबने जमाने से भुलायें हैं  रही हलचल यहाँ सच बात पर ही तो निगाहें भी न कहती य...

आँसू

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मैं जब भी ढलका किसी मासूम की आँखों से तो न जाने कितने सपने , बचपन की शामें जो सुलगते रहे भूख-अभावों की आग  से मेरे अस्तित्व पर हँसते , मैं चुपचाप आँखों से निकल खोजता अपने मायने ...