मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Monday, 4 September 2017
अब मिले आप
अब मिले आप भी, ज़िंदगी की तरह
रोशनी मिल गयी, बंदगी की तरह
हम नहीं बेख़बर, आपसे अब रहे
आप हैं अब हमारी,ख़ुशी की तरह
---- नीरु
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