आसमां वही फिर उठाकर चले

                    बात कोई जो दिल में छुपाकर  चले ।
                    आसमां भी वही फिर उठाकर चले ।

                     राह में ठोकरें भी बहुत- सी लगी,
                     हौसले हम सभी फिर जगाकर चले।

                     देखिये तो सनम इक इधर भी नज़र,
                     हाथ भी तो हमीं से मिलाकर चले ।

आप भी साथ में अब हमारे हुए,
ख़्वाब अपने सभी हम सजाकर चले ।

कौन दुश्मन हमारा यहाँ पर हुआ
भेद अपने सभी हम भुलाकर चले
---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा)

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