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Showing posts from November, 2015

चिराग़

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साथ दिल के चिराग़ जलते हैं ये हुनर भी कमाल रखते हैं   रात काली रही किसे है ग़म रोशनी का वजूद रखते हैं दे गया ख्वाब फिर नया कोई प्यार के रंग खास सजते हैं हो सके तो वहीं नज़र रखन...

किससे कहें

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सह रहे हम चुपचाप क्यों, बयान किससे कहें क्यों खोया सुकून, जिस्म बेजान किससे कहें दहशतों-नफ़रतों का आखिरी अंजाम दर्द यहाँ  इंसान हो रहा हैवान किससे कहें  ---- नीरु (निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

तितली के रंग

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बचपन की प्यारी ताज़गी का ढंग  अभी बाकी है लम्हों में  उनके जिंदगी का संग  अभी बाकी है खो न जाये कहीं बचपन-सुकून-सपनों के बगीचे नन्ही हथेली में तितली का   रंग अभी बाकी है ----- निरुपमा मिश्रा

रोशनी का त्योहार

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रोशनी होती दिलों में हमेशा प्यार से मिटायें  हर ग़म का अंधेरा संसार से  बेबसी के आँसू हों नही किसी आँख में सीखते हम यही रोशनी के त्योहार से ----- निरुपमा मिश्रा

रूठ गये तो

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रूठ जायेगा रब तो भी वजह होगी कि बनाई दुनिया उसी ने संभालेगा वही सब, रूठ जायेगा ज़माना तो वजह होगी कि चाहिये दुनिया को अपने मतलब के लोग कभी तो कहीं तो जरूरत होगी ज़माने को भी मेरी, मगर मेरे अपने तुम हाँ तुम्ही रूठ गये तो जीने की वजह क्या होगी मालूम नहीं क्योंकि अपनों के संग होने की कोई वजह तो नही होती रिश्तों के बीच अपनेपन की चाह ये विश्वास की डोरी बाँधती हमें बेवजह भी लेकिन जब कभी तलाशते साथ होने की वजह तो अक्सर अपने- आप से रूठ जाते हम खुद-ब- खुद बेवजह -----नीरु ' निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'