मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Sunday, 2 August 2015
मित्रता
प्यार,स्नेह,ममता का भला कोई क्या मोल दूँ मैं
शब्दों से ऊपर जो, उसे कोई क्या बोल दूँ मैं
रिश्तों में दोस्ती है तो कायम दोस्ती से रिश्ते
साँसें हैं जिनसे,नाम कोई क्या अनमोल दूँ मैं
----- निरुपमा मिश्रा "नीरू"
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