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Showing posts from July, 2015

कृतज्ञ राष्ट्र की भावभीनी श्रृद्धांजलि,, सलाम हमारा आदरणीय कलाम जी को

गर्व उन्नत भाल के थे सम्मान, विजय-तिलक सरीखे राष्ट्र-नयनों ने उनके संग निज स्वप्न हैं सफल देखे शिक्षक थे हिंदुस्तानी, तो शिक्षक समान ही विदा हुए ज्ञान,विज्ञान,स्वाभिमान का आजीवन संगम अनूठे ------ नीरु 

मैं हूँ मुझमें

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मैं कभी अपने से अलग तो नही, डरती अपने को खोने से कहीं, जीवन की चौखट पर रहे सुख-दुःख मेहमान सदा, सीखी है मैंने जिंदगी हँसकर जीने की अदा, आँखों में मेरे संजोती  आशायें रोशनी दर्द में भी होंठों पर हँसी, बिखराव में सबको समेटते अगर कभी मैं  अंधेरों में भटकती  तो मेरी आस्थायें मुझे खुद से मिलातीं मेरे संस्कार जीवंत रखते  मेरे जीवन- अस्तित्व को, बहुत अच्छा  कि मैं कहीं खोई नहीं, मिल ही जाती  आसानी से मैं हूँ शाश्वत मुझमें ------- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

राह परछाई नही

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साथ चलती किसके कोई राह परछाई नही कौन जानें मुश्किलें कब साथ में आई नही दे गया कोई कली की आँख में सपने नये आस में वो शाम तक यूँ ही तो मुरझाई नही मीत हैं सुख के सभी कोई कभी दुःख में नही भीड़ में रहते हुए क्या साथ तन्हाई नही भूख ने छीना यहाँ  ईमान भी इंसान का शर्म आती है मगर मजबूर टिक पाई नही बदलते मौसम कहाँ तुमको कहा हमने कभी देखने को असलियत तो पास बीनाई नही ------ निरुपमा मिश्रा " नीरू"

अज्ञानी

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चलो, उठाओ किताबी बातें कहीं और लेकर जाओ, यहाँ हर शब्द धुंधले नज़र आते हैं जब अनुभव से परे बातें बताते हैं, खुल जाये मन की आँखें तो खोल लो, अपनी भावनायें भी तो तौल लो, अपने फर्ज़ से मुँह छिपाना, परछाई-मृगतृष्णा के पीछे भागना क्या ज्ञान कहलाता, रहने दो फिर तो मुझे अज्ञानी बने रहना भाता ,,,, ----- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

जीवन की गाड़ी

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एक की अपूर्णता पूर्ण हो जाती दूसरे का सामर्थ्य पाकर हाथ में हाथ थामें कदम मिलाते कदमों से, सुनते हैं एक- दूजे के सुख-दुःख छिपे उनकी धड़कनों में, जीवन की गाड़ी के दो पहिये बराबर सहयोग करते, तमाम झंझावात- खुशियां समेटते, एक राह के हमसफर जीवन भर का साथ जीवनसाथी अगर विपरीत रूप लेकर अलग - अलग दिशाओं के रुख किये चलते रहें तो जीवन नरक से बदतर हो जाता ,फिर तो साथ - साथ चलना सम्मान संजोये रखने की मजबूरी कहलाता ----- नीरु ' निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

तुम

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बिना तुम्हारे मैं एक दिन की कल्पना करूं भी तो कैसे, तुम्हे खोने के ख्याल से भी डरती , दूरियां न आयें कभी कुछ कहने कुछ सुनने की आस में हर पल रहती, वो अनकहे शब्द जो कहना चाहे थे मैंने पर कहने- सुनने के बीच आ जाते हैं कुछ अधूरे सपने, बिखर जाती सपनों की तरह जब तुम्हे सपनों में खोया हुआ पाती, महसूस करो न तुम भी, भले ही पूरे न हों ये अधूरे सपनें, रहें हमेशा अपने बस अपने, मेरी खामोशियां कहतीं, कि तुम हो मेरे, मेरे हो सिर्फ  और सिर्फ तुम ----- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

स्वयं

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जिसने जीवन को जाना स्वयं को पहचाना वो सागर की तरह गंभीर होता है, उसमें समायी होती हैं प्यार-अपनेपन की नदियां, बेवजह की हलचल नही होती, भावनाओं के तूफान खामोश रहते हैं हृदय में ------ निरुपमा मिश्रा " नीरू"