मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Wednesday, 28 May 2025
अमावस की रात में
प्रीत के सुर में गुनगुनाये , तुम अमावस की रात में,
फूल जैसे खिलखिलाये,तुम खुशबुओं की बरसात में,
अमरबेल-सा अपना प्यार, अमर रहेगा सदियों तलक,
दीपक जैसे जगमगाये , तुम मन-आँगन-बारात में ।
---- निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी "नीरू"
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