खोल दे मन के द्वार

मुस्कान तेरी चंपई
रूप तेरा हरसिंगार
अब खोल दे मन के द्वार  

तन है थामें सांस जब तक
रहे शक्ति-आभास तब तक  
स्वयं तुम नदिया की धार
अब खोल दे मन के द्वार

लता पनपे तुमसे प्यार की
बगिया हो ममता-दुलार की
शक्ति का तुम ही उपहार
खोल दे अब मन के द्वार

भावनायें जब होती मनोहर
हो जाता जीवन सुमन- सरोवर
महक जाता है संसार
खोल दे अब मन के द्वार
-----  नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

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