कालिख सभ्य समाज पर
बस्ती में खामोशियां, थी सड़कें भी मौन।
बेबस के चीत्कार को, कब सुनता है कौन।।
कोई घटना यूं नही, होती आकस्मात ।
घटनाओं की भूमिका,लिखता भीतरघात।।
लज्जित मानवता हुई, नरपशु को धिक्कार।
कालिख सभ्य समाज पर, पाशविक अनाचार।।
शोर हुआ हलचल हुई,उभरा दर्द अपार।
जन मन को आघात दे,हिंसा अत्याचार ।।
कुछ मिनटों के मौन पर, ठहर गया है वक्त।
अपराधी को चाहिए, दंड सख्त से सख्त।।
बेबस के चीत्कार को, कब सुनता है कौन।।
कोई घटना यूं नही, होती आकस्मात ।
घटनाओं की भूमिका,लिखता भीतरघात।।
लज्जित मानवता हुई, नरपशु को धिक्कार।
कालिख सभ्य समाज पर, पाशविक अनाचार।।
शोर हुआ हलचल हुई,उभरा दर्द अपार।
जन मन को आघात दे,हिंसा अत्याचार ।।
कुछ मिनटों के मौन पर, ठहर गया है वक्त।
अपराधी को चाहिए, दंड सख्त से सख्त।।
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