शून्य में निहारती
शाम के धुंधलके में
देखती रही मैं एकटक
क्षितिज के पार जाते सूरज को....
एक दिन इसी पीताम्बरी छाया के तले
कहीं दूर नील गगन की छांव में
सपने बुनते-गुनगुनाते
फिर मिलेंगे हम और तुम....
और हाँ, सुनूंगी मैं दिल से
तुम्हारी वही बातें
जिनको मैं सुना ही करती रही हूँ
बार-बार.. हजारों बार
क्योंकि जब मैं बोलने लगती हूँ
तो तुम भी तो सुनते रहते हो मुझे
प्यार -भरी आँखों से निहारते
अपने होठों पर लिए मंद-मुस्कान
----- नीरु
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