आज के समय की जीवनशैली में स्त्री-पुरुष दोनों को ही घर से लेकर बाहर तक की हर जिम्मेदारी बराबर साथ-साथ निभानी पड़ रही है तो ऐसे में यदि नारी स्वयं अपने महत्व को नही समझेगी तो भला और कोई क्यों समझना चाहेगा तथा भले ही हर पुरुष समाज में खुले तौर पर नही स्वीकार करता हो लेकिन प्रत्येक पुरुष यह तो जानता ही है कि अगर नारी नही होगी तो पुरुष भी नही होगा , क्योंकि दोनों का अस्तित्व दोनों के होने से ही है
सन् 1999 में लड़कों के मुकाबले भारत में लड़कियों की संख्या प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 945 लड़कियों से घटते-घटते सन् 2011 में 918 ही रह गई है जो कि कोई मामूली या छोटी समस्या नही है, इसके साथ ही आर्थिक परिदृश्य पर रोजगार के मामलों में भी गांवों , कस्बों में 30 % तो शहरों में 20 % ही है |
महिला सशक्तिकरण की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजनायें मील का पत्थर साबित हो सकती हैं - सामाजिक योजनाओं में (१) एकीकृत बाल विकास योजना के तहत मिशन इंद्रधनुष टीकाकरण (२) आई०सी०डी०एस० के तहत सम्पूर्ण पोषण की व्यवस्था (३) राजीव गाँधी किशोरी सशक्तिकरण योजना सबला (४) अवैध मानव तस्करी रोकने के लिए उज्जवला योजना (५) मुसीबत में फंसी लड़कियों , महिलाओं के आश्रय के लिए वर्षों से संचालित स्वाधार गृह योजना , तथा इसके साथ ही शैक्षिक योजनाओं में हैं - (१) बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ योजना (२) कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, एवं आर्थिक योजनाओं में हैं (१) जन्म से दस वर्ष की लड़कियों का खाता खोलने के लिए (१) सुकन्या समृद्धि योजना (२) सन् 1986-87 से संचालित लड़कियों के कौशल विकास के लिए "स्टेप प्रोग्राम |
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