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Showing posts from March, 2016

रंग दे बसंती चोला

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भर दे मन की पिचकारी भारत माँ दुलारी, तीन रंग में होती होली, विश्व गुरु बनकर लहराये तिरंगा - हिंदुस्तान देश के लिए तन मन धन सब हो जाये कुर्बान ----- निरुपमा मिश्रा

होली

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चहक उठी है सृष्टि सलोनी मोहक सिर पर ताज़ महकती हवा के पंख लगाकर मन तो झूमें आज आज देखकर  मनमोहन को  ये नयन शरमाये मन के द्वार पर मुस्काये सजना बावरे आज ----- निरुपमा मिश्रा

स्त्री - धर्म

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स्त्री जीवन को धारण पालन- पोषण करती, धर्म जीवन जीने की अनुशासित - प्रेरक जीवन शैली, स्वीकार होते दोनों आसानी से, तर्क- कुतर्क से परे जिन्हें अपनाया जाता रहा, फिर क्यों कुंठित होते अनियंत्रित जीवन को देखकर मन घबराता रहा, स्त्री धर्म तो हर कोई बताता रहा, पुरुष अपना धर्म निभाने से क्यों कतराता रहा, स्त्री अपनी कोख में जीवन को धारण करती, अपने जीवन में सबके वर्चस्व को स्वीकार करती , घर, परिवार, संसार के बीच अनगिनत जिम्मेदारियों को सरलता से अपनाती, फिर किस धर्म- अधर्म की परिभाषा में स्वयं स्त्री ही खुद को इंसान समझने- समझाने का धर्म भूल जाती, धर्म तो इंसानियत का ही दुनिया में है रह जाना, स्त्री - पुरुष सबको होगा साथ -साथ आगे आना कि बहुत जरूरी धर्म इंसानियत का निभाना ------ नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनायें

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शक्ति का प्रयोजन अधूरा जब तक नही है शिवम् सारतत्व यही जीवन का सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् --- नीरू