छोड़ो भी शिकायती जुमले ,
सब कुछ कह भी दो
तो भी कुछ न कुछ
रह जाता,
उम्मीदें सबकी कोई
कहाँ पूरी कर पाता,
प्यार-सम्मान- भरोसा
ये एहसास जिंदा न रहे
अगर तो इंसान भी
जीते - जी मर जाता ,
घुटता रहता है हरदम
टूटता और बिखर जाता,,
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
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