Saturday, 17 August 2024

कालिख सभ्य समाज पर

बस्ती में खामोशियां, थी सड़कें भी  मौन।
बेबस के चीत्कार को, कब सुनता है कौन।।

कोई  घटना  यूं  नही,  होती आकस्मात ।
घटनाओं की भूमिका,लिखता भीतरघात।।

लज्जित मानवता हुई, नरपशु को धिक्कार।
कालिख सभ्य समाज पर, पाशविक अनाचार।।

शोर हुआ हलचल हुई,उभरा दर्द अपार।
जन मन को आघात दे,हिंसा अत्याचार ।।

कुछ मिनटों के मौन पर, ठहर गया है वक्त।
अपराधी को चाहिए, दंड सख्त से सख्त।।




Saturday, 10 August 2024

तन्हाई में शाम गुजरना ठीक नही

#ग़ज़ल 

तन्हाई में शाम गुजरना ठीक नही।
महफ़िल में भी दर्द उभरना ठीक नही।

सच्चे वादे मजबूती हैं रिश्तों की ,
करके वादा रोज मुकरना ठीक नही।

हिम्मत से हालात बदलते देखा है, 
कैसी भी मुश्किल हो डरना ठीक नही ।

तेरे आने की राहें देखी हमने,
उम्मीदों का रोज बिखरना ठीक नही ।

सीधे सच्चे लोग तमाशा बन जाते,
हमदर्दी के दौर गुजरना ठीक नही ।

नाजुक दिल ये पत्थर इसको मत समझो,
मत उलझो जज्बातों से वरना ठीक नही ।

कहलाना इंसान हमारा भी हक़ है,
खोकर के सम्मान बिखरना ठीक नही ।
Nirupama Mishra 

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