रंग अपने बचपन के
रंग बदलती हुई दुनिया में, रंग अपने बचपन के उम्र भले ही कितनी होगी, दिल दो रहने बचपन से दुनियादारी के चक्कर में, ख़ुद को भी हम भूल गये हमसे हमको मिलवाये, वो ढंग सलोने बचपन के ---- नीर...
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे