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सुखद भविष्य का अनुष्ठान ( पितृपक्ष)

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अध्यात्म की भाषा में यदि कहा जाये तो मृत्यु के पश्चात् वीतरागी आत्मा संसार से मुक्त होकर ईश्वरीय शक्ति के स्वरुप में समाहित हो जाती है किन्तु राग-विराग , मोह-माया , दु:ख -सुख, वैमनस्य  आदि अनेक प्रकार की  इच्छाओं- आकांक्षाओं के वशीभूत होकर पुनर्जन्म के माध्यम से अपनी काम्य वस्तुओं एवं प्रिय लोगों के चतुर्दिक् अपने नवजीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की तलाश करती है |      यह प्रश्न सदैव शाश्वत रहा है कि क्या पितृपक्ष में हमारे पूर्वजों को जो कि भौतिक शरीर को त्याग चुके हैं , उन्हें सम्पत्ति , भोजन, कपड़ों आदि की आवश्यकता होती होगी, यदि मृत देह से विमुक्त स्वतंत्र विचरित आत्मा को समय और स्थान से परे कहीं दूर किसी नवीन आयाम में रहना सुनिश्चित है तो वंशजों द्वारा श्रृद्धापूर्वक भावअर्पण के विभिन्न उपादानों एवं क्रियाकलापों से प्रसन्नता तो जरुर मिलती होगी|       पितृ-ऋण से मुक्ति के विधान के लिए विवाह-संस्कार की रीति निर्धारित की गई है , यहां पर गौरतलब है कि विवाह की रीति निभाने के लिए पहले पांच तत्वों से निर्मित भौतिक शरीर में उपस्थित ...

दिल्ली से प्रकाशित " अनंतवक्ता" पत्रिका में प्रकाशित लेख " समाज का स्वरूप और स्त्री "

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आज के समय की जीवनशैली में स्त्री-पुरुष दोनों को ही घर से लेकर बाहर तक की हर जिम्मेदारी बराबर साथ-साथ निभानी पड़ रही है तो ऐसे में यदि नारी स्वयं अपने महत्व को नही समझेगी तो भला और कोई क्यों समझना चाहेगा तथा भले ही हर पुरुष समाज में खुले तौर पर नही स्वीकार करता हो लेकिन प्रत्येक पुरुष यह तो जानता ही है कि अगर नारी नही होगी तो पुरुष भी नही होगा , क्योंकि दोनों का अस्तित्व दोनों के होने से ही है  सन् 1999 में लड़कों के मुकाबले भारत में लड़कियों की संख्या प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 945 लड़कियों से घटते-घटते सन् 2011 में 918 ही रह गई है जो कि कोई मामूली या छोटी समस्या नही है, इसके साथ ही आर्थिक परिदृश्य पर रोजगार के मामलों में भी गांवों , कस्बों में 30 % तो शहरों में 20 % ही है |   महिला सशक्तिकरण की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजनायें मील का पत्थर साबित हो सकती हैं - सामाजिक योजनाओं में (१) एकीकृत बाल विकास योजना के तहत मिशन इंद्रधनुष टीकाकरण (२) आई०सी०डी०एस० के तहत सम्पूर्ण पोषण की व्यवस्था (३) राजीव गाँधी किशोरी सशक्तिकरण योजना सबला (४)...