मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
भावना सरल प्रीत की,करुणा, विवेक, ज्ञान सृष्टि सुंदरता निखरे, जीवन हो आसान --- निरुपमा मिश्रा