आता है सभी के जीवन में
प्रेम,विश्वास, अपनेपन का सवेरा,
लाता है जो अंधेरों में
आत्मविश्वास की रोशनी,
पर ये तभी तो होगा
जब मन के द्वार
बंद न हों हमारे,
वरना धुंधलका
घिरता ,बढ़ता जाता अंधेरा,
जो लिपटा रहता
है हमारे चारो तरफ
सर्प की तरह,
डसते रहते दिन के उजाले
गहरा जाता गहरी रातों का
अंधेरा
-नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Saturday, 27 June 2015
गहरा अंधेरा
Monday, 22 June 2015
थाह
कौन है अपना कौन पराया थाह मिलेगी कहाँ
जो सरल है उसे सहजता से राह मिलेगी कहाँ
जब तक न पहचानेंगे नयन रंग इस संसार के
सपन को साकार करने की सलाह मिलेगी कहाँ
----- निरुपमा मिश्रा " नीरू "
Friday, 12 June 2015
शीतल छाँव तुम
जलते-तपते हुए जीवन में शीतल- मधुर छाँव हो तुम
पलकों की पगडंडियों पर तो सपनों के गाँव हो तुम
मैं सुखों की शाम बनी तुम आशाओं की भोर हुए
मैं प्यासी धरती जैसी तुम तो घटा घनघोर हुए
मिल जाती चाहत को मंजिल मेरे वो लगाव हो तुम
जलते-तपते हुए जीवन...
पलकों की पगडंडियों....
विह्वल- विभोर होकर जब तुमने पुकारा है मुझको
अनुभूतियों ने दिल की तो फिर संवारा है मुझको
उबारे उलझन से मुझे विश्वास की वो नाँव हो तुम
जलते-तपते हुए जीवन....
पलकों की पगडंडियों...
अतृप्त मन-जीवन है तो कभी मधुमास दिया
कभी सराहे जगत यूं तो कभी परिहास किया
नही पराजय कोई जग- शतरंज में वो दाँव हो तुम
जलते-तपते हुए जीवन में शीतल- मधुर छाँव हो तुम
पलकों की पगडंडियों पर तो सपनों के गाँव हो तुम
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'