कैसै कह दे

शुरुआत कहाँ से और आखिरी कहाँ कैसे कह दे कोई दरिया है ये कि समंदर कश्तियों को मालूम नही ---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे