Monday, 25 May 2015

कैसै कह दे

शुरुआत कहाँ से
और आखिरी कहाँ
कैसे कह दे कोई
दरिया है ये कि
समंदर
कश्तियों को
मालूम नही
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "

Tuesday, 19 May 2015

मौत

ठहरे दर्द को लेकर तो हर पल पुकारा होगा
तिल-तिल मर रही इंसानियत को धिक्कारा होगा
जिंदगी तकलीफ देती रही उसे अंतिम साँस तक
मौत ने भी आखिर खामोशी से मारा होगा
----- निरुपमा मिश्रा "नीरू "

Saturday, 16 May 2015

चाह

अपनेपन की चाह अपने रिश्तों में रही
दिल की बात दिल से हमने किश्तों में कही
भावना की चाह है नही बात कमियों की
हम भी तो इंसानों में फरिश्तों में नही
---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "

Thursday, 14 May 2015

उम्मीदें

छोड़ो भी शिकायती जुमले ,
सब कुछ कह भी दो
तो भी कुछ  न कुछ
रह जाता,
उम्मीदें सबकी कोई
कहाँ पूरी कर पाता,
प्यार-सम्मान- भरोसा
ये एहसास जिंदा न रहे
अगर तो इंसान भी
जीते - जी मर जाता ,
घुटता रहता है हरदम
टूटता और बिखर जाता,,
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'