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Showing posts from May, 2015

कैसै कह दे

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शुरुआत कहाँ से और आखिरी कहाँ कैसे कह दे कोई दरिया है ये कि समंदर कश्तियों को मालूम नही ---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "

मौत

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ठहरे दर्द को लेकर तो हर पल पुकारा होगा तिल-तिल मर रही इंसानियत को धिक्कारा होगा जिंदगी तकलीफ देती रही उसे अंतिम साँस तक मौत ने भी आखिर खामोशी से मारा होगा ----- निरुपमा मिश्रा "न...

चाह

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अपनेपन की चाह अपने रिश्तों में रही दिल की बात दिल से हमने किश्तों में कही भावना की चाह है नही बात कमियों की हम भी तो इंसानों में फरिश्तों में नही ---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "

उम्मीदें

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छोड़ो भी शिकायती जुमले , सब कुछ कह भी दो तो भी कुछ  न कुछ रह जाता, उम्मीदें सबकी कोई कहाँ पूरी कर पाता, प्यार-सम्मान- भरोसा ये एहसास जिंदा न रहे अगर तो इंसान भी जीते - जी मर जाता , घुटता रहता है हरदम टूटता और बिखर जाता,, ---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'