जलता दीपक कब घबराया रातों से ।
टूटे जब जब हम बिखरे हैं टुकड़ों में,
एक रहे तो उबरे झंझावातों से ।
उगते सूरज को ढक लेते हैं बादल,
चमके नभ में कब घबराता घातों सें।
मंजिल को पाना आसान नही होता,
चलते रहना बचना है आघातों से ।
बहलावों में खोकर खुद को मत खोना,
उलझा देंगे लोग तुम्हें भी बातों से ।