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जलता दीपक कब घबराया रातों से

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धीरज रखना मत घबराना बातों से । जलता दीपक कब घबराया रातों से । टूटे जब जब हम बिखरे हैं टुकड़ों में, एक रहे तो उबरे झंझावातों से । उगते सूरज को ढक लेते हैं बादल, चमके नभ में कब घबराता घातों सें।  मंजिल को पाना आसान नही होता,  चलते रहना बचना है आघातों से । बहलावों में खोकर खुद को मत खोना,  उलझा देंगे लोग तुम्हें भी बातों से । निरुपमा मिश्रा 'नीरू'