Posts

Showing posts from 2017

शान अपनी सभी तो दिखाते रहे

Image
                 शान अपनी सभी तो दिखाते रहे                  दर्द भी क्या कहें गुनगुनाते रहे                  आपके प्यार में हम बेहया हो गये                  प्यार भी क्या ज़हर सब पिलाते रहे                  आपने दे दिया ग़म यही है बहुत                  और क्या दे सके मुस्कराते रहे बात कुछ भी नहीं और बातें बहुत आप भी तो कहानी सुनाते रहे हम रहे राह में चल दिये दो कदम आप मंजिल बहुत पास आते रहे --- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

अब मिले आप

Image
अब मिले आप भी, ज़िंदगी की तरह रोशनी मिल गयी, बंदगी की तरह हम नहीं बेख़बर, आपसे अब रहे आप हैं अब हमारी,ख़ुशी की तरह ---- नीरु

आसमां वही फिर उठाकर चले

Image
                    बात कोई जो दिल में छुपाकर  चले ।                     आसमां भी वही फिर उठाकर चले ।                      राह में ठोकरें भी बहुत- सी लगी,                      हौसले हम सभी फिर जगाकर चले।                      देखिये तो सनम इक इधर भी नज़र,                      हाथ भी तो हमीं से मिलाकर चले । आप भी साथ में अब हमारे हुए, ख़्वाब अपने सभी हम सजाकर चले । कौन दुश्मन हमारा यहाँ पर हुआ भेद अपने सभी हम भुलाकर चले ---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा)

शातिर निगाहें

Image
                                                    सुबह के वक्त थोड़ी सुनसान सड़क                                                        पर फैली गंदगी के बीच                                                         सांवली-सलोनी काया                                                    अपनी उम्र के हिसाब से कुछ ज़्यादा                                          ...

तेरी वापसी

Image
                                            तेरी वापसी                                        जूही , चमेली,कचनार                                 चंपा,बेला और हरसिंगार के फूल                                         महक उठे फिर                                         दिवस मास नहीं                                  ऐसा लगा कि सदियों बाद                          ...

रंग अपने बचपन के

रंग बदलती हुई दुनिया में, रंग अपने बचपन के उम्र भले ही कितनी होगी, दिल दो रहने बचपन से दुनियादारी के चक्कर में, ख़ुद को भी हम भूल गये हमसे हमको मिलवाये, वो ढंग सलोने बचपन के ---- नीर...

अक्षरों में एहसास के पल

Image
हंसमुख स्वभाव की थी नवधा और उसके पति संयम भी उसी के स्वभाव के जैसे थे | दोनों पति-पत्नी को कहानी, कविताओं, शेरो-शायरी का बहुत शौक़ था, नवधा तो कभी-कभार कहानियां-कविताएं आदि भी लिखा करती जिसके पहले पाठक अक्सर उसके पति ही हुआ करते , नवधा को बचपन से ही लिखने का शौक़ रहा इसलिए वो अपने विवाह के पहले जब भी कुछ लिखा करती तो सबसे छुपा कर अपने माता-पिता, भाई-बहनों को पढ़ाया करती थी, नवधा का परिवार उसके लेखन को सराहता, और भी बेहतरीन लिखने को हमेशा प्रेरित भी किया करता, शादी के बाद उसके ससुराल में भी किसी को उसके लेखन के शौक पर कोई आपत्ति नहीं थी|     विवाह के बाद कुछ दिनों तक तो नवधा का लेखन का हुनर छिप-सा गया था मगर परिवार वालों की इच्छा के अनुसार और अपने कुछ ख़ास दोस्तों का दिल रखने के लिए नवधा ने समय निकाल कर फिर से लेखनी थामी | एक दिन नवधा अपने रोज़मर्रा के काम-काज़ निपटा रही थी कि आलमारी साफ़ करते समय उसके हाथों में उसके पति की एक पुरानी डायरी लगी तो वो उसके पन्ने पलटने लगी, बीच में गुलाबी स्याही से लिखी प्यार भरी तहरीर पढ़ कर वो सोचने लगी कि ये क्या है , क्या उसके पति की विवाह से पह...

बच्चे मन के सच्चे

Image
"ओह्ह,धूप तो बहुत तीखी है", मधुर, मगर बेबस आवाज़ के पीछे आस-पास बिखरी हुई कई निगाहें, सिमट कर देखने लगीं कि ये किसने कहा| सबने देखा तो जाना ये तो एक मध्यम कद कि सुंदर-सी सांवली सलोनी महिला के मुख से छलकी हुई शब्द लहरी है, जो अपने दो छोटे मासूम बच्चों को लिए बस स्टॉप पर अपने गंतव्य की ओर जाने वाली बस के इंतज़ार में पेड़ों की छाँव ख़ोज़ते पसीने से तर-बतर हुई जा रही थी|    उस महिला के साथ के बच्चे भी अपनी माँ का आँचल थामें हुए कड़ी धूप से तिलमिला रहे थे, वो कभी अपनी माँ को देखते तो कभी पीछे लगी दुकानों पर टंगे हुये खिलौने आदि, कभी निगाहें दौड़ा कर चिप्स,कुरकुरे और टाफ़िज़ खोजने लगते, माँ से अपनी मांगें मनवाने के लिए बीच-बीच में कुनमुना भी रहे थे मगर माँ कड़ी धूप से अपने बच्चों को बचाने के लिए जल्दी से बस के आने की मन ही मन ही प्रार्थना करने लगी जो कि उसके मुट्ठियों के बंद होने और खुलने के साथ बुदबुदाते होंठों से सभी देखने वालों को साफ़ महसूस हो रहा था|   बस स्टेशन से सूचना मिलने पर कि बस देर से आएगी क्योंकि रास्ते में ट्रैफ़िक बहुत है ,माँ अपने बच्चों को लेकर बगल के गन्ने वाले जूस की ...

प्रेम-अगन

Image
जनवरी की कड़कड़ाती ठण्ड के बाद फ़रवरी की गुनगुनाती धूप के आँचल में बसंती पवन की मदमस्त चाल दीवानगी के रोग की एक मशहूर वज़ह पाई जाती है, ऐसे में जनवरी के माह में मकर संक्रांति के त्यौहार में आसमान में उड़नें वाली पतंगों की ओट में नैनों के पेंच इस छत से उस छत पर दिखाई देना बहुत ही मनोरम दृश्य रहता रहा है, ये सिलसिला यूँ ही मार्च महीने के होली के रंगीन नजारों तक अनवरत जारी रहता है |     वैसे एक बात तो गौरतलब है कि इंसान हो या और कोई जीव सभी के मन को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के प्रीत का एहसास एक अज़ीब से नशे में डूबने को मजबूर कर देता है, जिसमें चार जोड़ी आँखों की गुस्ताखियों की हमेशा से ही बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पाई जाती रही है, इन सबमें अक्सर पड़ोसिनें अक़्सर खूबसूरत ही होती हैं और फिर अनेक वज़हों से , कई रिश्तों-नातों की बोलियों-ठिठोलियों की दियासलाई से न जानें कब, कैसे प्रेम -अगन की ज्वाला किसी के भी मन को भीतर ही भीतर जलाने लगे ये कोई नहीं जान सकता|      ठीक इसी तरह अपनी कुछ उलझनों का हल पाने को बेताब, अनेकों जिज्ञासाओं को लेकर नादिरा ने अपनी सखी राधा से अपनी...