गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
फिर उजाले से हमें धोखा हुआ है क्यों भला साँप जैसे कौन ये लिपटा हुआ है क्यों भला गोद सूनी,माँग सूनी , बुझ गया रोशन दिया चल रही सरहदों पर बेरहम ये हवा है क्यों भला ------ निरुपमा मिश्...
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे