प्रियतम अनुगामी

प्रियतम अनुगामी चली मैं आत्ममुग्धा- सी, प्रेमिल- स्पर्श-पवन जैसे हो जीवन -अमृत, क्षितिज के पार मिलन तत्पर अम्बर और वसुंधरा मिलना भी है अनुपम शाश्वत युग से निर्धारित , विह्व...
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे