Posts

Showing posts from August, 2015

सांकल ( दरवाजे की डोर)

Image
खोल दी मैंने अपने और कई घरों के दरवाजों की सांकल आहिस्ते से, ये सोचकर कि रोशनी का साथ होना भी जरूरी , बहुत अंधेरा होता है कितने चेहरे, कैसे चेहरे हैं कुछ पता नही चलता, ऐसे में घर की चौखट से निकलो तो रास्तों पर भी अंधेरा ही मिलता है  , मिल जाते वहाँ अनगिनत पैर नही दिखते जिनके चेहरे मगर, कुछ पैर चलते - भागते कुछ डगमगाते हुए लगते जो कि आते हुए अपनी ओर ही, ऐसा एहसास होता अचानक कि कई विषधर चले आ रहे हों उन पैरों  की जगह, कई दूसरे पैर उन पैरों को देख परवाह नही करते और बेफिक्र अपनी राह चलते, कई और तो चुपके से अपने को महफूज रखने को दिशायें तलाशते, लेकिन कोई मेरे डरे, सहमें हुए पैरों के साथ नही चलता, ये पैर किसके हैं नही पहचाने जाते उनके चेहरे भी क्योंकि घर से ही शायद अंधेरा मेरे साथ चल रहा होता, तभी तो आज मैंने घर से निकलने के साथ खुद ही खोल दी है अपने और अपने रास्तों में मिलते घरों के बंद दरवाजों की सांकल कि रोशनी लेकर साथ चलूं और लौटकर आ सकूं अपने घर को शायद मैं , सुरक्षित ----- निरुपमा मि...

चेहरे

Image
नकाबों में छुपे हैं चेहरे कितने झूठे थे ख्वाब जो, वो सुनहरे कितने निगाहें भी निगेहबां भी हमारे वो दिखाये अक्स जो, वो दोहरे कितने ----  नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

सच-झूठ

Image
जिंदगी के अनेक रूप होते हैं,कभी छाँव तो कभी धूप,ऐसे ही कभी बदलते मौसम जैसे रंग बदलते हैं रिश्ते भी, फिर भी मन की डोर से बंधे रिश्ते कभी मन से दूर नही होते|       वसुधा की माँ के अस...

देश

देश के लिए भी तो मशविरा करिये कुर्बान अपनी जिस्म-ओ-जां करिये अंधेरा न हो रास्तों पर कभी भी हो सके तो चिराग़ -सा जला करिये ---- निरुपमा मिश्रा " नीरू"

परिवर्तन

Image
जानती हूँ जीवन में आगे जाने के लिए अपनी मजबूत जगह बनाने के लिए अपने को बहुत बदलना पड़ता है, पर इस बदलने की कोशिश में कहीं हम खुद को ही न  कहीं भूल जायें, अपने चेहरे पर किसी और का मुखौटा न लगायें, जरूरी है कुछ पाने के लिए कुछ खोना, लेकिन जरूरी तो नही ऐश्वर्य पाने के लिए ईश्वर को खोना,,,, ----- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

मित्रता

प्यार,स्नेह,ममता का भला कोई क्या मोल दूँ मैं शब्दों से ऊपर जो, उसे कोई क्या बोल दूँ मैं रिश्तों में दोस्ती है तो कायम दोस्ती से रिश्ते साँसें हैं जिनसे,नाम कोई क्या अनमोल दूँ ...