Saturday, 31 May 2025

ITR Filing 2025 : पोर्टल खुलते ही नही भरना चाहिए आयकर रिटर्न, जानिए जल्दी आईटीआर भरने के जोखिम...।

ITR Filing 2025: पोर्टल खुलते ही नहीं भरना चाहिए आयकर रिटर्न, जानिए! जल्दी आईटीआर फाइलिंग में क्या जोखिम हैं?


 रिफंड में देरी से लेकर टैक्स नोटिस आने तक का खतरा 

ITR Filing 2025: ITR फाइलिंग पोर्टल खुलते ही रिटर्न भरना सही नहीं होता। जल्दबाजी में गलती या अधूरी जानकारी से रिफंड में देरी या टैक्स नोटिस आ सकता है। आइए जानते हैं कि आपको कब तक इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना चाहिए, क्योंकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की शुरुआती ITR यूटिलिटीज में अक्सर तकनीकी खामियां होती हैं।


 ITR Filing 2025: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने वित्त वर्ष 2024-25 (आकलन वर्ष 2025-26) के लिए सभी इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फॉर्म जारी कर दिए हैं। पहले ये फॉर्म अमूमन नया वित्त वर्ष शुरू होते ही जारी कर दिए जाते थे। लेकिन, इस बार अप्रैल के अंत में ही नोटिफाई किए गए हैं। हालांकि, अभी तक ITR फाइलिंग के लिए जरूरी ऑनलाइन सॉफ्टवेयर या यूटिलिटीज जारी नहीं की हैं।


ऐसे में सवाल उठता है कि टैक्सपेयर्स को रिटर्न फाइल कब करना चाहिए? क्या उन्हें ITR फाइलिंग का पोर्टल खुलते ही रिटर्न फाइल कर देना चाहिए या कुछ समय तक इंतजार करना चाहिए? आइए इसका जवाब जानते हैं:


TDS सर्टिफिकेट मिलने की आखिरी तारीख 15 जून

इनकम टैक्स नियमों के अनुसार, टैक्सपेयर्स को टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) के सर्टिफिकेट, जैसे कि फॉर्म 16 और फॉर्म 16ए, अधिकतम 15 जून तक मिल जाने चाहिए। ये फॉर्म सैलरीड क्लास को उनके नियोक्ता जारी करते हैं।

साथ ही, किसी टैक्सपेयर्स ने वित्त वर्ष के अंतिम तीन महीने (जनवरी से मार्च 2025) में कोई आय अर्जित की है, जिस पर टीडीएस लागू होता है, तो उस आय के भुगतानकर्ता को 31 मई तक ई-टीडीएस रिटर्न दाखिल करना होता है। इसके बाद यह डेटा टैक्सपेयर्स के फॉर्म 26एएस में अपडेट होता है।

इस प्रक्रिया के पूरा होने और टीडीएस सर्टिफिकेट मिलने में समय लगता है, इसलिए जून के पहले सही और पूरी जानकारी मिल पाना मुश्किल होता है। ऐसे में अगर आप पोर्टल खुलते ही आप ITR फाइल करने की कोशिश करेंगे, तो दिक्कत हो सकती है।


SFT और AIS की अपडेट भी जून तक

पिछले कुछ साल में आयकर नियमों में कई बदलाव हुए हैं। अब कई वित्तीय संस्थाओं को वित्त वर्ष में हुई बड़ी ट्रांजेक्शंस की रिपोर्टिंग करनी होती है। इसे स्पेसिफाइड फाइनेंशियल ट्रांजेक्शंस (SFT) कहा जाता है। ये रिपोर्टिंग मई 31 तक पूरी हो जाती है, लेकिन डेटा का प्रोसेसिंग और टैक्सपेयर्स के एनुअल इन्फॉर्मेशन सर्टिफिकेट (AIS) में अपडेट जून के दूसरे हफ्ते तक होता है।

यह फैक्टर भी बताता है कि जल्दबाजी में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से बचना चाहिए। इससे डिटेल में मिसमैच की आशंका बन जाती है।


जल्दी फाइलिंग में क्या जोखिम हैं?

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जब शुरुआती ITR यूटिलिटीज जारी करता है, तो उसमें अक्सर तकनीकी खामियां होती हैं। इनमें गलत कैलकुलेशन, सिस्टम फेल या डेटा वैलिडेशन के मसले सामने आ सकते हैं।

साथ ही, अगर कोई टैक्सपेयर जून 15 से पहले ITR फाइल करता है, तो फॉर्म 26AS, फॉर्म 16/16ए और AIS में पूरी जानकारी न होने की वजह से गलत या अधूरी जानकारी रिपोर्ट हो सकती है। इससे बाद में संशोधित रिटर्न फाइल करना पड़ सकता है, जो समय और प्रयास बढ़ाता है।





टैक्सपेयर को क्या करना चाहिए?

यह सुनिश्चित करें कि आपको टीडीएस सर्टिफिकेट 15 जून तक मिल जाए। फॉर्म 26AS और AIS की सही जानकारी के साथ ITR भरें। जल्दबाजी में फाइलिंग से बचें, ताकि टैक्स नोटिस, स्क्रूटनी या रिफंड में देरी जैसी दिक्कत न हो।

आम तौर पर टैक्सपेयर्स के लिए 15 जून के बाद ITR फाइल करना बेहतर होता है क्योंकि इस दौरान सभी वित्तीय डेटा अपडेट हो चुका होता है और फाइलिंग में गलती की आशंका नहीं रहती। इससे रिफंड मिलने में देरी नहीं होती और टैक्स विभाग से नोटिस आने का डर भी नहीं रहता।


कब जल्दी फाइल करना चाहिए रिटर्न?

अगर आपकी आय सिर्फ सैलरी, बैंक इंटरेस्ट या अन्य साधारण स्रोतों से है। साथ ही, फॉर्म 16 व फॉर्म 26AS पहले से उपलब्ध हैं, तो जल्दी रिटर्न फाइल कर सकते हैं। अगर आपके मामले में इनकम टैक्स रिफंड बनता है, तो जल्दी रिटर्न फाइल करना बेहतर हो सकता है। इससे जल्दी रिफंड मिल सकता है, जिससे कैश फ्लो सुधरता है। अगर आपको होम लोन, एजुकेशन लोन या वीजा के लिए ITR की जरूरत हो, तो जल्दी फाइलिंग आपके प्रोसेस को तेज कर सकती है। अगर आपकी इनकम, टैक्स डिटेल्स या डिक्लेयरेशन में पिछले साल की तुलना में कोई बदलाव नहीं हुआ है, तो जल्दी फाइल करना सुरक्षित रहता है।

Wednesday, 28 May 2025

अमावस की रात में

प्रीत के सुर में गुनगुनाये  , तुम अमावस की रात में,

फूल जैसे खिलखिलाये,तुम खुशबुओं की बरसात में,

अमरबेल-सा अपना प्यार, अमर रहेगा सदियों तलक,

दीपक जैसे जगमगाये , तुम मन-आँगन-बारात में ।
----  निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी "नीरू"

महिला स्वास्थ्य जागरूकता -: जानकारी एवं बचाव

महिला स्वास्थ्य जागरूकता - जानकारी एवं बचाव
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 महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में विचार करते समय बहुत सी बातों पर विमर्श करना होता है। महिलाओं के लिए सबसे ज़्यादा जोखिम वाली बीमारियों और स्थितियों जैसे कि हृदय रोग और स्तन कैंसर के साथ ही रोज़मर्रा के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अन्य पहलुओं जैसे कि प्रीमेनस्ट्रुअल सिंड्रोम, जन्म नियंत्रण, प्रजनन क्षमता, रजोनिवृत्ति आदि को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना भी एक जीवंत जीवन जीने लिए के आवश्यक है।

कम उम्र की महिलाओं में स्वास्थ्य संबंधित जटिलताओं के साथ ही जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ तथा संभावनाएं अधिक होती जाती हैं। उम्र कोई भी हो, जीवनशैली के विकल्प स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने और मनचाही ज़िंदगी जीने में मदद करने में काफ़ी मददगार साबित हो सकते हैं। व्यायाम और फिटनेस के साथ-साथ स्वस्थ आहार महिलाओं स्वास्थ्य में बड़ा बदलाव ला सकता है। जनन स्वास्थ्य से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक महिला स्वास्थ्य के अंतर्गत कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है । यह सभी उम्र की महिलाओं को अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है ताकि वे स्वस्थ, खुशहाल जीवन का आनंद ले सकें।  

महिला स्वास्थ्य की जटिलताओं के बीच 
स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ़ शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही नही है बल्कि इसका मतलब है कि जीवन के सभी चरणों में सभी ज़रूरतों को पूरा करना। यौवन से लेकर गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति और उसके बाद तक महिलाओं को कई तरह के जैविक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों का सामना करना पड़ता है जो उनकी जीवन शक्ति को प्रभावित करते हैं। उन्हें स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है ।

महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कुछ रोग विकसित होने के जोखिम अधिक होते हैं जिनमें चिंता और अवसाद, माइग्रेन, ऑस्टियोपोरोसिस, थायरॉयड रोग और मूत्र मार्ग में संक्रमण (यूटीआई) शामिल हैं।
रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह शामिल हैं जिनकी शीघ्र पहचान और उपचार से रोकथाम की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, उपचार और अनुसंधान में असमानताओं का सामना करने की अधिक संभावना होती है। अत: महिलाओं के विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। 




महिलाओं को अपने स्वास्थ्य से संबंधित कुछ सरल उपाय जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करेंगे जैसे कि -:  

(१) महिलाएं नियमित जांच को प्राथमिकता दें। अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के साथ नियमित शारीरिक जांच करवाना स्वास्थ्य को बनाए रखने और किसी भी संभावित समस्या का पहले से पता लगाने के लिए आवश्यक है। जांच के दौरान अपनी किसी भी परेशानी या लक्षणों पर चर्चा करना सुनिश्चित करें।

(२) अपने शरीर और उसके बदलावों को समझना अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की कुंजी है। अपने मासिक धर्म चक्र, स्तन स्वास्थ्य और अपने शरीर के किसी भी अन्य अनूठे पहलू से खुद को परिचित करायें। अगर अस्वस्थ महसूस होता है या कुछ गड़बड़ लगे तो डॉक्टर से सलाह लेने में संकोच न करें।

(३) उचित पोषण पर ध्यान दें। संतुलित आहार समग्र स्वास्थ्य और जीवनी शक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। अपने भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, प्रोटीन और स्वस्थ वसा शामिल करने का लक्ष्य रखें। हाइड्रेटेड रहें और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और अतिरिक्त शर्करा को सीमित करें।
(४) सक्रियता बनाये रखें । नियमित शारीरिक गतिविधि से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं जिसमें पुरानी बीमारियों का जोखिम कम करना, मूड में सुधार और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाना शामिल है। ऐसी गतिविधियाँ खोजें जो आपको पसंद हों, चाहे वह पैदल चलना हो, जॉगिंग करना हो, योग करना हो या तैराकी करना हो, और उन्हें अपनी दिनचर्या का नियमित हिस्सा बनाएँ। 

(५) महिलाएं अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। माइंडफुलनेस, मेडिटेशन, जर्नलिंग और प्रियजनों के साथ समय बिताने जैसी स्व-देखभाल गतिविधियों का अभ्यास करें। अगर आप अपनी मानसिक सेहत से जूझ रहे हैं तो चिकित्सक की मदद लेने में संकोच न करें।

(६) महिलायें अपने लिए स्वास्थ्य के लिए स्वयं बात करें। जब बात स्वास्थ्य की हो तो दृढ़ रहें। सवाल पूछने, दूसरे की राय लेने और मेडिकल अपॉइंटमेंट के दौरान अपनी ज़रूरतों और प्राथमिकताओं को बताने में संकोच न करें।आपका स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है और आपको सुना जाना चाहिए।


(७) अपने साथ ही अन्य महिलाओं का समर्थन करें। महिलाओं का स्वास्थ्य एक सामूहिक प्रयास है। जानकारी साझा करके, प्रोत्साहन देकर और सभी के लिए सुलभ स्वास्थ्य सेवा का समर्थन करके अन्य महिलाओं को उनके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में सहायता करें। 


आइए हम सभी महिला स्वास्थ्य जागरूकता के सशक्तिकरण, शिक्षा और जानकारी के लिए साथ मिलकर हम हर जगह महिलाओं के लिए एक स्वस्थ भविष्य बना सकते हैं।
 --निरुपमा मिश्रा 'नीरू'

Tuesday, 27 May 2025

हिंदू धर्म में कुल देवी- देवता की पूजा


कौन होते हैं कुलदेवी-देवता ? इनकी पूजा न करने पर परिवार को भुगतने पड़ते हैं ये परिणाम



भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी-देवता की पूजा करते आ रहे हैं. कौन होते हैं कुलदेवी-देवता, इनकी पूजा का क्या महत्व है, पूजन न होने पर परिवार को क्या परिणाम भुगतने पड़ते हैं जानिये........



 कौन होते हैं कुलदेवी-देवता ? इनकी पूजा न करने पर परिवार को भुगतने पड़ते हैं ये परिणाम
कौन हैं कुलदेवी देवता




भारत में समाज या जाति के कुलदेवी और देवता होते है. इसके अलावा पितृदेव भी होते हैं. जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है ।



इसके अलावा एक ऐसा भी दिन होता है जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं. जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं ।

भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता / कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है. प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं. जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया ।


हर जाति और समाज के कुलदेवी-देवता -:

विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा. हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं. जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है. आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है ।

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों - ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें ।

कौन होते हैं कुल देवी या देवता ?



कुलदेवी - देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है. ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है. सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है. अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है. इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता ।

उदाहरण - इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी - माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है. खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये ।

ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है. किन्तु कुलदेवी - देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे ।

कैसे पता करें अपने कुलदेवी-देवता के बारे में -:

यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता - देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला - मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां) कहा होता है. हर गोत्र - धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी / कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है ।

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता / देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता / देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ।

इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया ।



कुलदेवी-देवता की पूजा न करें पर क्या होता है ?

कुल देवता / देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक - टोक प्रवेश शुरू हो जाता है.
उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं ।
व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है.
अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है ।

कैसे करते हैं कुलदेवता-देवी परिवार की रक्षा ?

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार मंर अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ।

ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।

ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए.

कब-कब होती है इनकी पूजा ?

कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी - विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ।

यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा - उन्नति होती रहे ।

अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है. जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना ।
घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए ।
हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि....
इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योंकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है.
क्या धर्म बदलने पर कुलदेवी-देवता का त्याग करना चाहिए ?

किन्तु धर्म या पंथ बदलने के साथ साथ यदि कुलदेवी - देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि. वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है ।

ऐसे अनेक परिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम. एक और बात ध्यान देने योग्य है - किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के. इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे ।

कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की विधि :-

जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री. पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये - 4 पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, 10 सुपारिया, 8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये, पान के 10 पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार की मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा.
ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नही, जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नही।
बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी - रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए ।
पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें। साथ ही घर में बनी पूरी - हलवा - खीर इन्हें अर्पित करें ।
ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें ।
इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें ।
सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता / कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता इसलिए उन्हें इससे अलग ही रखना चाहिये।
विशेष दिन और त्यौहार पर शुद्ध लाल कपड़े के आसान पर कुलदेवी / कुलदेवता का चित्र स्थापित करके घी या तेल का दीपक लगाकर गूगल की धुप देकर घी या तेल से हवन करकर चूरमा बाटी का भोग लगाना चाहिए, अगरबत्ती, नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर-फूल आदि श्रद्धानुसार।

नवरात्री में पूजा अठवाई के साथ परम्परानुसार करनी चाहिए।

पितृ देवता के पूजन की विधि :-

शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके, घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, घी से हवन करकर चावल की सेनक या चावल की खीर - पूड़ी का भोग लगाना चाहिए. अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर - फूल आदि श्रद्धानुसार ।

* चावल की सेनक -: चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले ।

*अठवाई -: दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा, इस प्रकार दो जोड़े कुल मिलाकर ४ पूड़ी ; २ मीठा पुआ और थोड़ा सूजी का हलवा ।

कुलदेवी / कुलदेवता की पूजा न करने का परिणाम -:


इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है, इनके आशीर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। यही वो देव या देवी है जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है ।
आपकी पूजा पाठ,व्रत कथा जो भी आप धार्मिक कार्य करते है उनको वो आपके इष्ट तक पहुँचते हैं। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को ये ही नहीं पता की हमारे कुलदेव या देवी कौन है, जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं ।
आज हमें यह पता ही नहीं चल रहा की हम सब पर इतनी मुसीबते आ क्यों रहे है ? बहुत से ऐसे लोग भी है जो बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नहीं है ।
बेटा बेरोजगार होता है बहुत पढने - लिखने के बाद भी पिता पुत्र में लड़ाई होती रहती है, जो धन आता है घर मे पता ही नहीं चलता कौन से रास्ते निकल जाता है।                                                    पहले बेटे - बेटी की शादी नहीं होती, शादी किसी तरह हो भी गई तो संतान नहीं होती है तो ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है ।
आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है, जिसके कारण नकारात्मक शक्तियां आप पर हावी हो जाती है. फिर चाहे आप कितना पूजा - पाठ करवा लो कोइ लाभ नहीं होगा ।
लेकिन आधुनिक लोग इन बातो को नहीं मानते. आँखे बन्द कर लेने से रात नहीं हो जाती. सत्य तो सत्य ही रहेगा. जो हमारे बुजुर्ग लोग कह गए वो सत्य है, भले ही वो आप सबकी तरह अंग्रेजी स्कूल में ना पढ़े हो लेकिन समझ उनमे आपसे ज्यादा थी.उनके जैसे संस्कार आज के बच्चों में नहीं मिलेंगे ।
आपसे निवेदन है की अपने कुलदेव या कुलदेवी का पता लगाऐ और उनकी शरण में जाये. अपनी भूल की क्षमा माँगे और नित्य कुलदेवता / कुलदेवी की भी पूजा किया जाता है ।

  ------------- एस्ट्रॉलोज़र डॉ० अनीष व्यास

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Disclaimer-: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि यह ब्लॉग किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है । किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लीजिये।