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Showing posts from 2016

हवाओं की खुशबू में है

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जिसे खोजती रहीं निगाहें वो मेरे पहलू में है आईना वही तो दिल का जो मेरी आरजू में है मुस्कराने लगी ये कायनात देख अदायें उसकी वो तो गुलशन की झूमती हवाओं की खुशबू में है ------ नीरु

जीवन-सुधा की खोज़

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   भारत देश ने अपनी आजादी के तो सत्तर साल पूरे कर लिये मगर भारतवासियों की सदियों से चली आ रही मानसिक गुलामी की बेड़ियां तो देश को अभी भी जकड़े हुए हैं | वास्तव में स्वतंत्रत ह...

सुखद भविष्य का अनुष्ठान... पितृपक्ष ।

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अध्यात्म की भाषा में यदि कहा जाये तो मृत्यु के पश्चात् वीतरागी आत्मा संसार से मुक्त होकर ईश्वरीय शक्ति के स्वरुप में समाहित हो जाती है किन्तु राग-विराग , मोह-माया , दु:ख -सुख, वैमनस्य  आदि अनेक प्रकार की  इच्छाओं- आकांक्षाओं के वशीभूत होकर पुनर्जन्म के माध्यम से अपनी काम्य वस्तुओं एवं प्रिय लोगों के चतुर्दिक् अपने नवजीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की तलाश करती है |      यह प्रश्न सदैव शाश्वत रहा है कि क्या पितृपक्ष में हमारे पूर्वजों को जो कि भौतिक शरीर को त्याग चुके हैं , उन्हें सम्पत्ति , भोजन, कपड़ों आदि की आवश्यकता होती होगी, यदि मृत देह से विमुक्त स्वतंत्र विचरित आत्मा को समय और स्थान से परे कहीं दूर किसी नवीन आयाम में रहना सुनिश्चित है तो वंशजों द्वारा श्रृद्धापूर्वक भावअर्पण के विभिन्न उपादानों एवं क्रियाकलापों से प्रसन्नता तो जरुर मिलती होगी|       पितृ-ऋण से मुक्ति के विधान के लिए विवाह-संस्कार की रीति निर्धारित की गई है , यहां पर गौरतलब है कि विवाह की रीति निभाने के लिए पहले पांच तत्वों से निर्मित भौतिक शरीर में उपस्थित ...

दिल्ली से प्रकाशित " अनंतवक्ता" पत्रिका में प्रकाशित लेख " समाज का स्वरूप और स्त्री "

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आज के समय की जीवनशैली में स्त्री-पुरुष दोनों को ही घर से लेकर बाहर तक की हर जिम्मेदारी बराबर साथ-साथ निभानी पड़ रही है तो ऐसे में यदि नारी स्वयं अपने महत्व को नही समझेगी तो भला और कोई क्यों समझना चाहेगा तथा भले ही हर पुरुष समाज में खुले तौर पर नही स्वीकार करता हो लेकिन प्रत्येक पुरुष यह तो जानता ही है कि अगर नारी नही होगी तो पुरुष भी नही होगा , क्योंकि दोनों का अस्तित्व दोनों के होने से ही है  सन् 1999 में लड़कों के मुकाबले भारत में लड़कियों की संख्या प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 945 लड़कियों से घटते-घटते सन् 2011 में 918 ही रह गई है जो कि कोई मामूली या छोटी समस्या नही है, इसके साथ ही आर्थिक परिदृश्य पर रोजगार के मामलों में भी गांवों , कस्बों में 30 % तो शहरों में 20 % ही है |   महिला सशक्तिकरण की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजनायें मील का पत्थर साबित हो सकती हैं - सामाजिक योजनाओं में (१) एकीकृत बाल विकास योजना के तहत मिशन इंद्रधनुष टीकाकरण (२) आई०सी०डी०एस० के तहत सम्पूर्ण पोषण की व्यवस्था (३) राजीव गाँधी किशोरी सशक्तिकरण योजना सबला (४)...

रंग में रंग मिलता गया

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आपके प्यार में खो गये इश्क में रतजगे हो गये दर्द भूले सभी खो गये प्यार के काफिले हो गये ठीक था होंठ चुप ही रहे बात से जलजले हो गये बात में बात जुड़ती गई बात से फलसफ़े हो गये  रं...

अभी राज़ अपना बताया नही है

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अभी प्यार हमने जताया नही है अभी हाल दिल का बताया नही है बहुत ख्वाब देखा निगाहों से ओझल अभी आँख में सब सजाया नही है रुके जो नही है हमारी निशानी अभी चाल अपनी दिखाया नही है कई कर...

तू खुदा हो गया

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देखते आपको इक नशा हो गया प्यार दिल ने किया तू खुदा हो गया आजकल रात से बात होने लगी फिर सुबह का पता बावरा हो गया हम कहें क्या इसी सोच में रह गये प्यार की इक अदा सांवरा हो गया इक हमारे नही हो सकेंगे वही दिल हमारा किसी पर फिदा हो गया बात कुछ खास हममें कहीं तो रही दूर होते हुए सिलसिला हो गया सामने आप हों तो खुशी मिल गई दूर जाते हुए दिल अनमना हो गया देखिये गौर से "नीरु"  तस्वीर में दर्द देेेकर वही फिर दवा हो गया  ---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

दवा दिल की पीर के

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जो चल पड़ेंगे अंधेरों को चीर के दवायें  बनेंगे वही  दिल की पीर के हैं भूलनी पीड़ा तो सब प्रथायें सड़ी -गली  अब बनेंगी जिंदगी की परिभाषायें नई -नई होंगे नही  फकीर हम किसी लकीर के जो चल ----- वही बनेंगे------ खुशी टूटे दिल की , मिली नज़र को रोशनी गुमसुम खोयेगी  कब चार दिन की चाँदनी  बनकर  ग़ज़ल-गीत रहना है नज़ीर  के जो चल------- वही बनेंगे------ हो जाये  कितना भी कद ये खजूर तो नही  आँसू किसी आँख में हमें मंजूर तो नही  छाया  भी मिले नही क्यों  राहगीर के  जो चल पड़ेंगे अंधेरों को चीर के  दवायें वही बनेंगे दिल की पीर के  ------- नीरु

अर्धनारीश्वर

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सामर्थ्य सृजनशक्ति पुरुष और प्रकृति, आँखें देखती बाहर तो अकेलापन अधूरापन, अपने भीतर झांके पहचाने तो एकांत विवेक-बुद्धि सद्बुद्धि, मनन मन नमन, शक्ति का प्रयोजन अधूरा जब तक नही है शिवम्, सारतत्व यही जीवन का सत्यम, शिवम, सुन्दरम जगत-ईश्वर अर्धनारीश्वर वसुधैव कुटुम्बकम ----- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी) 

नववर्ष

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कितनी सहजता से तारीखों के बदलते ही कैलेंडर बदल जाते , समय- परिस्थितियां भी बदल ही जाते, माटी के तन में एक मन जो इन सबके बीच समेटते- सहेजते बनते- बिगड़ते एक जैसा कहां रहता, बदला...

रंग दे बसंती चोला

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भर दे मन की पिचकारी भारत माँ दुलारी, तीन रंग में होती होली, विश्व गुरु बनकर लहराये तिरंगा - हिंदुस्तान देश के लिए तन मन धन सब हो जाये कुर्बान ----- निरुपमा मिश्रा

होली

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चहक उठी है सृष्टि सलोनी मोहक सिर पर ताज़ महकती हवा के पंख लगाकर मन तो झूमें आज आज देखकर  मनमोहन को  ये नयन शरमाये मन के द्वार पर मुस्काये सजना बावरे आज ----- निरुपमा मिश्रा

स्त्री - धर्म

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स्त्री जीवन को धारण पालन- पोषण करती, धर्म जीवन जीने की अनुशासित - प्रेरक जीवन शैली, स्वीकार होते दोनों आसानी से, तर्क- कुतर्क से परे जिन्हें अपनाया जाता रहा, फिर क्यों कुंठित होते अनियंत्रित जीवन को देखकर मन घबराता रहा, स्त्री धर्म तो हर कोई बताता रहा, पुरुष अपना धर्म निभाने से क्यों कतराता रहा, स्त्री अपनी कोख में जीवन को धारण करती, अपने जीवन में सबके वर्चस्व को स्वीकार करती , घर, परिवार, संसार के बीच अनगिनत जिम्मेदारियों को सरलता से अपनाती, फिर किस धर्म- अधर्म की परिभाषा में स्वयं स्त्री ही खुद को इंसान समझने- समझाने का धर्म भूल जाती, धर्म तो इंसानियत का ही दुनिया में है रह जाना, स्त्री - पुरुष सबको होगा साथ -साथ आगे आना कि बहुत जरूरी धर्म इंसानियत का निभाना ------ नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनायें

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शक्ति का प्रयोजन अधूरा जब तक नही है शिवम् सारतत्व यही जीवन का सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् --- नीरू

बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें

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भावना सरल प्रीत की,करुणा, विवेक, ज्ञान सृष्टि सुंदरता निखरे, जीवन हो आसान --- निरुपमा मिश्रा

गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

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फिर उजाले से हमें धोखा हुआ है क्यों भला साँप जैसे कौन ये लिपटा हुआ है क्यों भला गोद सूनी,माँग सूनी , बुझ गया रोशन दिया चल रही सरहदों पर बेरहम ये हवा है क्यों भला ------ निरुपमा मिश्...